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________________ ३० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [हिदिविहत्ती ३ एगसमो वा, उक्क० अणंतकालमसखेजा पो०परियट्टा । इत्थि० जह० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अज० जह० एगसमो, उक्क० अणंत कालमसं०पो०परि । अवगदवेद० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० जह० ओघं । अज० जह [ एगस०, ] उक्क० अंतोमु० । ६५३०. कसायाणुवादेण सव्वकसाईसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० मणजोगिभंगो । बारसक०-णवणोक० ज० ओघं । अज० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अन्तर्महूर्त या एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्महूर्त तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अपगतवेदवालोंके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-नरकमें जीव सम्यग्दर्शनके साथ कुछ कम तेतीस सागर काल तक रह सकता है । अब यदि कोई अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीव नरकमें उत्पन्न हुआ और वहाँ कुछ कम तेतीस सागर काल तक सम्यग्दर्शन के साथ रहा तो उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर पाया जाता है। तथा इनके अतिरिक्त शेष प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है, क्योंकि नपुंसकवेदका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण है। यहाँ सब प्रकृतियोंकी जघन्य आदि स्थितियोंका शेष काल स्त्रीवेदियोंके समान घटित कर लेना चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका काल कहते समय वह नपुंसकवेदीके स्त्रीवेदके अन्तिम काण्डकघातके समय प्राप्त होता है जिसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। जो अपगतवेदी जीव उपशमश्रेणी से उतर कर अवेदभागके अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति पाई जाती है अतः इसके उक्त तीन प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान एक समय कहा। जो अपगतवेदी क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणीसे उतर कर अपगतवेदके अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और आठ कषायोंकी जघन्य स्थिति होती है अतः इसके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान एक समय कहा । तथा जो अपगतवेदी जीव छह नोकषायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकमें तथा पुरुषवेद और चार संज्वलन की क्षपणाके अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान पाया जाता है। अपगतवेदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूतें है, अतः अपगतवेदमें अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूत प्राप्त होता है। ६५३०. कषाय मार्गणाके अनुवादसे सब कषायवालोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मनोयोगियों के समान है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका काल ओघके समान है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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