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गा• २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिकालो $ ५२९. णवुस० मिच्छत्त-अट्ठक०-अहणोक०-चत्तारिसंजल० ज० जहण्णुक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पो०परियट्टा । सम्मत्तसम्मामि० जह० जहण्णक्क० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । अणंताणु० चउक्क० जह• जहण्णुक्क० एगस० । अज. ज. अंतोमु० की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। कोई मनुष्य उपशमश्रेणीसे उतर कर एक समयके लिये पुरुषवेदी हुआ और दूसरे समयमें मरकर वह देव हो गया तो भी वह पुरुषवेदी ही रहता है अतः पुरुषवेदमें उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय नहीं बनता । किन्तु जो उपशमश्रेणीसे उतर कर और पुरुषवेदी हो कर अन्तर्मुहूर्तमें क्षपकश्रेणी पर चढ़कर उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिको प्राप्त कर लेता है उसके उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। इसी प्रकार आठ नोकषायोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त घटित कर लेना चाहिये। दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अन्तिम समयमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति प्राप्त होती है अतः इसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल जिस प्रकार ओघमें घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ घटित कर लेना चाहिये । जो जीव उपशमश्रेणीसे उतर कर और पुरुषवेदी होकर अन्तर्मुहूर्तमें दशनमोहनीयकी क्षपणा कर देता है उसके सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। या जिसने उद्वेलनाके बाद अन्तर्मुहूर्तमें क्षायिकसम्यग्दशनको प्राप्त किया है उसक भी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूतं पाया जाता है। अतः उसे यहाँ ग्रहण नहीं करना चाहिये किन्तु उद्वेलना करता हुआ जो कोई जीव उपान्त्य समयमें पुरुषवेदा हो गया उसके सम्यक्त्व व सम्याग्मथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। पुरुषवेदी जीवके आठ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति अन्तिम काण्डकके समय प्राप्त हाती है और उसका उत्कीरणकाल
हते है अतः यहाँ आठ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहतं कहा । विसंयोजनाके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति प्राप्त होता है अतः इसका जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो पुरुषवेदी जीव मिथ्यात्वमें गया और अन्तर्मुहते में सम्यग्दृष्टि हो कर पुनः अनन्तानबन्धीकी विसंयोजना कर लेता है उसके अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य क अन्तमहतं पाया जाता है। तथा जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशमसम्यग्दृष्टि सासादनका प्राप्त हुआ और दूसरे समय में मरकर अन्यवेदी होगया उस पुरुषवेदीके अनन्तानबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय भी पाया जाता है। स्त्रीवेदमें भी इस प्रकार एक समय काल प्राप्त किया जा सकता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है।
५२६. नपुंसकवेदवालोंमें मिथ्यात्व, आठ कषाय, आठ नोकषाय और चार संज्वलनकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल
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