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गा०२२ ] द्विदिविहत्ती९ उत्तरपयडिहिदिकालो
२८७ ६५०७. आमिणि-सुद०-ओहि० मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क०-बारसक०-णवणोक० उक्क० जहएणुक्क० एगसमओ। अणक्क० ज० अंतोमु०, उक्क० छावहिसागरो० सादिरेयाणि । अणंताणु० चउक्क० देसूणाणि वा। एवमोहिदंस०-सम्मादि० । वेदय० एवं चेव । णवरि सम्म०-बारसक० [णवणोक०] छावहिसाग० पडिवुण्णाणि । सेसाणं देसूगाणि । मणपज्ज. सव्वपयडीणमुक्क० जहण्णुक्क० एगस० । अणुक्क० ज० अंतोमुहुत्ते, उक्क. पुवकोडी देसूणा । एवं संजद-परिहार०-संजदासंजद० । सामाइयछेदो० एवं चेव । णवरि चउवीसप० अणुक्क० जह• एगस० । और अताज्ञानी जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका सत्त्व पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक ही पाया जाता है, अतः इनके उक्त दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल एकेन्द्रियोंके समान कहा । शेष कथन सुगम है। अभव्योंमें भी छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान बन जाता है। इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी सत्ता नहीं होती यह स्पष्ट ही है। विभंगज्ञानमें सातवीं पृथिवीके समान
और सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल तो बन जाता है किन्तु सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल नहीं बनता, क्योंकि विभंगज्ञान मिथ्याष्टिके होता है और मिथ्यादृष्टिके इन दो प्रकृतियोंकी सत्ता पल्यके असंख्यातमें भागप्रमाण काल तक ही पाई जाती है।
६५०७. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व सन्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और "उत्कृष्ट काल साधिक छयासठ सागर है अथवा अनन्तानुबन्धी चतुष्कका कुछ कम छयासठ सागर है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों के भी इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्व बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल पूरा छयासठ सागर है शेषका कुछ कम छयासठ सागर है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि है। इसी प्रकार संयत, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयतोंके जानना चाहिये । सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें चौबीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है।
विशेषार्थ-सम्यग्दृष्टि जीवके सम्यक्त्व ग्रहण करनेके पहले समयमें ही सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है अतः मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवके सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा इन मार्गणाओंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक छ्यासठ सागर है, अतः सबकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक छ्यासठ सागर कहा। किन्तु अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर भी प्राप्त होता है, क्योंकि वेदकसम्यक्त्व के कालमें से मिथ्यात्व आदि तीन प्रकृतियोंके क्षपण कालको घटा देने पर और अनन्तानुबन्धी चतुष्कके विसंयोजन काल को मिला देने पर देशोन छ्यासठ सागर प्राप्त होते हैं। अब यदि
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