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२८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविही ३ भागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ। बादरेइंदियपज मिच्छत्त-सोलसक०णवणोक० उक्क० एइंदियभंगो । अणुक्क० ज० अंतोमु० णवणोकसायाणं एगसमओ, उक्क संखेजाणि वाससहस्साणि । सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० जहण्णुक्क० एगसमत्रो । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी। बादरेइंदियअपज्ज० सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्तभंगो। णवरि सुहमेइंदियपज्जत्ताणं अणक्क० ज० अंतोमुहुचे । सुहुम० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० उक्क० जहण्णुक्क० एगस० । अणुक० जह० खुद्दाभवग्गहणं समयूणं, उक्क० असंखेजा लोगा । सम्मत्तसम्मामि० एइंदियभंगो।
४६८. सव्वविगलिंदय० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० उक्क० जहण्णुक्क० एयस० । अणुक्क० ज० खुद्दाभवग्गहणं अंतोमु० समऊणं, उक्क० सगहिदी । सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० जहण्णुक्क० एगसम० । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क. सगहिदी। है जिसका प्रमाण असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सपिणी होता है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिके कालका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है पर नौ नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है और सबका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है।
६४६८ सब विकलेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय कम खुद्दा भवग्रहण प्रमाण और एक समय अन्तमुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय और . अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंके मिथ्यात्व और सोलह कषायकी उकृत्ष्ट स्थिति भवके पहले समयमें ही होती है अतः इनके उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। पर यह उत्कृष्ट स्थिति पर्याप्त एकेद्रियोंके ही प्राप्त होती है और इस अपेक्षासे लब्ध्यपर्याप्तकोंके उक्त कर्मोकी सब स्थिति अनुत्कृष्ट कही जाती है, अतः सामान्य एकेन्द्रियोंके उक्त प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल खुद्दा भवग्रहण प्रमाण कहा। तथा एकेन्द्रिय पर्यायमें जीव असंख्यात पुद्गल परिवर्तन काल तक लगातार रह सकता है और ऐसे जीवके बीच में उक्त
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