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________________ २६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहची ३ कस्स ? अण्ण. दसणमोहउवसामयस्स से काले वेदयं पडिवजहिदि त्ति तस्स ज. हिदिविहत्ती । अधवा विसंजोएमाणस्स एयहिदिदुसमयकालमेचे सेसे । ४७६ सासण. सव्वपयडीणं जहण्ण कस्स ? अण्ण जो चारित्तमोहउवसामो सासणं पडिवण्णो से काले मिच्छ गाहदि त्ति तस्स जहिदिविहत्ती । सम्मामिच्छा० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० ज० कस्स ? अण्ण० चउवीससंतकम्मियस्स सम्मामिच्छत् पडिवण्णस्स चरिमसमयसम्मामिच्छादिहिस्स | सम्मत्त-सम्माभि• जह० कस्स ? अण्ण० सागरोवमपुधत्तसंतकम्मेण सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जिय जो चरिमसमयसम्मामिच्छादिही जादो तस्स० जह विहत्ती । अणंताणू० चउक्क० ज० कस्स ? अण्ण. अहावीससंतकम्मिश्रो चरिमसमयसम्मामिच्छादिही तस्स ज० विहत्ती । मिच्छादि० एइदियभंगो । अणाहारि० कम्मइयभंगो । एवं सामित्ताणुगमो समत्तो। * [ कालो।] ४७७. कालाणुगमेण दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेणउसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? दर्शनमोहनीयका उपशामक जो कोई जीव तदनन्तर कालमें वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त होगा उसके अनन्तानबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। अथवा विसंयोजना करनेवाले जीवके एकस्थितिके दो समय कालप्रमाण शेष रहनेपर अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। . ६४७६. सासादन सम्यक्त्वमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? चारित्रमोहनीयकी उपशमना करनेवाला जो कोई जीव सासादनको प्राप्त हुआ है और तदनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होगा उसके सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। सम्यरमिथ्यात्वमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है उसके सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम समयमें उक्त कर्मोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? सागरपृथक्त्वप्रमाण सत्कर्मवाला जो कोई जीव सम्यगमिथ्यात्वको प्राप्त होकर जो अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टि है उसके उक्त कर्मोकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कको जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो कोई जीव सम्यग्मिध्यादृष्टि हो गया है उसके सम्यग्मिथ्या वके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। मिथ्यादृष्टिके एकेन्द्रियोंके समान भंग है। अनाहारकोंके कार्मणकाययोगियोंके समान भंग है। इस प्रकार स्वामित्वानुगम समाप्त हुआ। ॐ कालका अधिकार है। ६४७७. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे श्रोघकी अपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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