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________________ २६७ गा० २२] हिदिविहत्तीए उरपयडिद्विदिसामित्त मिच्छत्तस्स उकस्सहिदिसंतकम्मिओ कवचिरं कालादो होदि १ ४७८. एत्थ मिच्छत्तग्गहणेण सेसपयडिपडिसेहो कदो । उक्कस्सग्गहणेण जहण्णडिदिपडिसेहो कदो । सेसं सुगमं । * जहण्णण एगसमओ । ४७ . कुदो १ एगसमयमुक्कस्सहिदि बंधिय विदियसमए पडिहग्गस्स उक्कस्सहिदीए एगसमयकालुवलंभादो । विदियसमए हिदिखंडयघादेण विणा कथमुक्कस्सत्तं फिट्टदि ? ण अधहिदिगलणाए एगसमए गलिदे उक्कस्सत्ताभावादी । उक्कस्सहिदिसमयपबद्धस्स एगो वि णिसेगो ण गलिदो; सत्तवाससहस्समेत्तआबाहाए उवरि तस्स अवहाणादो । गलिदणिसेगो वि चिराणसंतकम्मस्स । तम्हा जाव हिदिखंडओ ण पददि ताव उक्कस्सहिदिसंतकम्मेण होदव्वमिदि ? ण एस दोसो, जहण्णहिदिअद्धाछेदो णिसेगपहाणो। तं कथं णव्वदे? कोधसंजलणस्स जहण्णहिदिअद्धाछेदो वेमासा अंतोमुहुत्तणा त्ति सुत्तणिद्देसादो। उक्कस्सहिदी पुण कालपहाणा तेण णिसेगेण विणा एगसमए गलिदे वि उक्कस्सत्तं फिट्टदि । तदो जहण्णकालस्स सिद्धमेगसमय । * मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवाले जीवका कितना काल है ? ४७८ यहाँ सूत्रमें मिथ्यात्व पदके ग्रहण करनेसे शेष प्रकृतियोंका निषेध कर दिया है। उत्कृष्ट पदके ग्रहण करनेसे जघन्य स्थितिका निषेध कर दिया है । शेष कथन सुगम है । * जघन्य काल एक समय है। $ ४७६. शंका-जघन्य काल एक समय क्यों है । समाधान—क्योंकि एक समयतक उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर दूसरे समयमें उत्कृष्ट संक्लेशसे च्युत प्राप्त हुए जीवके उत्कृष्ट स्थितिका एक समय प्रमाण काल पाया जाता है। शंका-दूसरे समयमें स्थितिकाण्डकघातके विना स्थितिके उत्कृष्टत्वका नाश कैसे हो जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि अधःस्थितिगलनाके द्वारा एक समयके गल जाने पर स्थितिमें उकृष्टत्व नहीं रहता ह। शंका-उत्कृष्टस्थितिप्रमाण समयप्रबद्धका एक भी निषेक नहीं गला है, क्योंकि सात हजार वर्षप्रमाण आबाधाके बाद निषेक पाया जाता है और जो निषेक गला भी है वह सत्तामें स्थित प्राचीन सत्कर्मका है अतः जबतक स्थितिकाण्डकका पतन नहीं होता है तबतक उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म होना चाहिये ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जघन्य स्थितिअद्धाच्छेद निषेकप्रधान है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिअद्धाच्छेद अन्तमुहूर्त कम दो महीना प्रमाण है इस सूत्रके निर्देशसे जाना जाता है। किन्तु उत्कृष्ट स्थिति कालप्रधान है, इसलिये निषेकके बिना एक समयके गल जाने पर भी उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्टत्वका नाश हो जाता है, अतः उत्कृष्ठ स्थितिका जघन्यकाल एक समय है यह बात सिद्ध होजाती है। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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