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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिष्ठिदिसामित्त २६३ संजलण० जह० कस्स ? अण्ण० अणियट्टिखवयस्स सवेदचरिमसमए वट्टमाणस्स जहण्णद्विदिविहत्ती । एवं गवुस । णवरि इत्थिवेद चरिमहिदिखंडए वट्टमाणस्स । पुरिस० पंचिंदियभंगो । वरि चत्तारिसंजलण-पुरिस० ज० कस्स ? अण्ण० सवेदचरिमसमए वट्टमाणस्स जहण्णहिदिविहत्ती। इत्थि-णवुस० ज० कस्स ? अण्ण. अणियट्टिखवयस्स चरिमद्विदिखंडए वट्टमाणस्स । अवगद० मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० ज० कस्स ? अण्ण० जो चउबीससंतकम्मिो उवसमसेढिमारुहिय ओयरमाणो से काले सवेदो होहदि ति तस्स जहण्णहिदिविहत्ती । एवमहकसाय-इत्थि०-णवुस । णवरि खइय०दिहिस्स वत्तव्वं । सत्तणोक०-चचारिसंज० ओघं । ४६९. कसायाणुवादेण कोधक० ओघं । णवरि अणियट्टिम्मि चरिमसमयकोधकसायम्मि चदुण्णं संजलणाणं जहण्णहिदिविहत्ती । एवं माण० । णवरि तिण्हं संजलणाणं चरिमसमयमाणवेदयस्स जहण्णहिदिविहत्ती। एवं माय० । णवरि दोण्हं संजलणाणं चरिमसमयमायवेदयस्स जहण्णहिदिविहत्ती। अकसा० मिच्छत्त-सम्मत्तसम्मामिच्छत्त० जह० क० ? अण्ण० चउबीससंतकम्मिो जो से काले सकसाओ विशेषता है कि सात नोकषाय और चार संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? सवेद भागके अन्तिम समयमें विद्यमान अन्यतर अनिवृत्तिकरण क्षपकके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार नपुंसकवेदीके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि अन्तिम स्थितिकाण्डकमें विद्यमान जीवके स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। पुरुषवेदीके पंचेन्द्रियके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि चार संज्वलन और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? सवेद भागके अन्तिम समयमें विद्यमान किसी जीवके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। स्त्रीवेद और नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? अन्तिम स्थितिकाण्डमें विद्यमान अन्यतर अनिवृत्तिकरण क्षपकके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है । अपगतवेदमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? चौबीस सत्कर्म वाला जो कोई जीव उपशमश्रेणी पर चढ़कर और उतरता हुआ तदनन्तर कालमें सवेदी होगा उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति जाननी चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनकी जघन्य स्थितिविभक्ति क्षायिकसम्यग्दृष्टिके कहनी चाहिये । तथा सात नोकषाय और चार संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति ओघके समान है। ६४६६. कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायमें जघन्य स्थितिविभक्ति ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनिवृत्तिकरणमें क्रोध कषायके अन्तिम समयमें चार संज्वलनों की जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार मानकषायमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मानवेदकके अन्तिम समयमें तीन संज्वलनोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार माया कषायमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मायावेदकके अन्तिम समयमें दो संज्वलनोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। अकषायी जीवमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई एक जीव चौबीस For Private' & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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