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________________ गा०२२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिसामित्तं २६१ . उक्कस्साउडिदिएसु अप्पप्पणो विमाणेसु. उववज्जिय चरिमसममयणिप्फिदमाणो तस्स जहण्णहिदिविहत्ती। सम्मत्त-सम्मामि०अणंताणु०चउक्काणं णिरोधभंगो । बारसक०. णवणोक० ज० कस्स ? अण्ण० जो संजदो जहासंभवेण उवसमसेटिं चडिय हेहा ओयरिय दंसणमोहणीयं खविय उक्कस्साउएण अप्पप्पणो विमाणेसु उववण्णो तस्स चरिमसमयणिफिदमाणस्स जहण्णहिदिविहत्ती । अणुदिसादि जाव सवढे ति एवं चेव । णवरि सम्मामि० मिच्छत्तभंगो। ४६३. एईदिएसु मिच्छत्त-बारसकसाय-भय-दुगुंछा-सम्मामिच्छचाणं तिरिक्खोघं । अणंताण चउक० गिच्छित्तभंगो । सत्तणोक० ज० कस्स ? जो एइंदिओ हदसमुप्पत्तियं कादूण समहिदि बंधिय अंतोमुहुत्तमच्छिय से काले अप्पप्पणो बंधमाढवेहदि त्ति तस्स जहण्णहिदिविहत्ती । सम्मत्त० सम्मामिच्छत्तभंगो। एवं सव्वएइ दिय-पंचकाए ति । ४६४. ओरालियमिस्स० तिरिक्खोघं । णवरि अणंताणु० चउक्क० मिच्छत्तभंगो । वेउव्विय० सोहम्मभंगो । णवरि सम्मत्तस्स सम्मामिच्छत्तभंगो।। ४६५. वेउब्धियमिस्स० मिच्छत्त० ज० कस्स ! अण्ण. जो जहासंभवेण उपशमा कर जो कोई जीव चौबीस कर्मोकी सत्तावाला होता हुआ उत्कृष्ट आयुको लकर अपने अपने विमानोंमें उत्पन्न हुआ उसके वहांसे निकलनेके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति सामान्य नारकियोंके समान है । बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई संयत यथासंभव उपशमश्रेणी पर चढ़कर और नीचे उतर कर तथा दर्शनमोहनीयका क्षय करके उत्कृष्ट अायुके साथ अपने अपने विमानोंमें उत्पन्न हुआ उसके वहाँसे निकलनेके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिविभक्ति होती है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक इसी प्रकार कथन करना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। ६४६३ एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सामान्य तिर्यचोंके समान है। अनन्तानबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो एकेन्द्रिय हतसमुत्पत्तिक होकर, समान स्थितिको बांधकर और अन्तर्मुहूर्त काल तक रह कर तदनन्तर समयमें अपने अपने बन्धको आरम्भ करेगा उसके जघन्य स्थिति विभक्ति होती है । सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वके समान है । इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय और पांच स्थावरकाय जीवोंके जानना चाहिये। ४६४ औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके जघन्य स्थितिविभक्ति सामान्य तिर्यंचोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है । वैक्रियिक काययोगमें सौधर्मके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इसमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्व के समान है। ६४६५. वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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