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________________ ग०११] . हिदिविहत्तीए उत्तरपडिदिसामित्त २३६ वण्णो तस्स उक्त विहत्ती। ___$ ४१६. अवगद० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० उक्क० कस्स ? अण्ण. जो उक्कस्सहिदिसंतकम्मिो पढमसमयअवगदवेदो जादो तस्स उक्क० विहत्ती । एवमकसा०-मुहम०-जहाक्खादसंजदे त्ति । ___४२०. मदि-सुदअण्णा० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० ओघभंगो । सम्मत्तसम्मामि० उक्क. कस्स ? अण्ण. जो मिच्छत्तउक्कस्सहिदि बंधिय अंतोमुहत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो । पुणो सम्मरेण सव्वलहुअमंतोमुहुत्तद्धमच्छिय मिच्छ गदो तस्स पढमसमए उक्क०विहत्ती। एवं विहंग० । ४२१. आभिणि-सुद०-अोहि० सयपयडीणमक्क० कस्स ? अण्ण. जो मिच्छाइटी देवो गेरइओ वा उक्क हिदि बंधिदूण द्विदिघादमकादूण अंतोमुहुत्तेण सम्म पडिवण्णो तस्स पढमसमयसम्माइहिस्स उक्क० विहत्ती । एवमोहिदंस०. सम्मादि-वेदय दिहि त्ति । मणपज्जव० सव्वपयडि. उक्क० कस्स ? अण्ण. वेदय०दिही उक्कस्सद्विदिसंतकम्मिश्रो तस्स पढमसमयमणपज्जवणाणिस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती । एवं संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०-संजदासजदे त्ति । हुआ उसके उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। ४१६ अपगतवेदमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला जो कोई जीव अपगतवेदवाला हो गया उसके पहले समयमें उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति होती है। इसी प्रकार अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयतके जानना चाहिये। ४२० ६ मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकाषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति ओघके समान है। सम्क्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्टि स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः सम्यक्त्वके साथ सबसे लघु अन्तमुहूर्त काल तक रह कर मिथ्यात्वमें गया उसके पहले समयमें उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार विभंगज्ञानियोंके जानना चाहिये। ६४२१ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियों की उत्कृष्टस्थिति विभक्ति किसके होती है ? जो कोई मिथ्यादृष्टि देव या नारकी जीव उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर और स्थितिघात न करके अन्तमुहूर्त कालमें सम्यवस्वको प्राप्त हुआ उस सम्यग्दृष्टि जीवके पहले समयमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला जो कोई वेदक सम्यग्दृष्टि जीव है उसके मनःपर्ययज्ञानको प्राप्त होनेके पहले समयमें उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है । इसी प्रकार संयत, समायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयतके जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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