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________________ २३६ जयघवलासहिदे कसायपाहुडै . द्विदिविही ३ पज्जत्त-बादरवाउपज्जत्तापजत-सुहुमवाउ०पज्जत्तापज्जत-बादरवणप्फदिपत्रेय अपज्ज०सुहुमवणप्फदि०पज्जत्तापज्जत-सव्वणिोद-तसअपज्जत्ता ति । ४१४. आणदादि जावुवरिमगेवज्जोति मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक० णवणोक० उक्क० ? अण्ण• जो दव्वलिंगी तप्पाओग्गुक्कस्सहिदिसंतकम्मित्रो पढमसमयउववण्णो तस्स उक्कस्सहिदिविहची । अणुदिसादि जाव सबसिद्धि ति सव्वपयडीणमुक्क० कस्स ? अएण. जो वेदय दिही तप्पाओग्गउक्कस्सहिदिसंतकम्मिओ पढमसमयउववण्णो तस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती । ४१५. एइंदिएमु मिच्छत्त-सोलसक० उक्क० कस्स ? अण्ण. जो देवो उक्कस्सहिदि बंधमाणो एइदिएसु पढमसमयउववण्णो तस्स० उक्क० विहत्ती। सम्मत्त० सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्तक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक, सब निगोद और बस अपर्याप्तक जीवोंके जानना चाहिये। विशेषार्थ-जिस मनुष्य या तिर्य चने मिथ्यात्व या सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबंध किया है ऐसा जीव अन्तर्मुहूर्त कालके पश्चात् उस उत्कृष्ट स्थितिके साथ मर कर पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो सकता है, अतः पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्तकोंके भवके पहले समयमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्तकम सत्तर कोडाकोड़ी सागर और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्तकम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर कही है तथा नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति उस लब्ध्यपर्याप्तक तियचके होती है जिसने पूर्व भवमें सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके और एक प्रावलिके पश्चात् उसका नौ नोकषायरूपसे संक्रमण करके पश्चात् अन्तर्मुहर्त कालके बाद पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें जन्म लिया है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मि. थ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका खुलासा मूलमें ही किया है। मूलमें और जितनी मार्गणाएं गिनाई . हैं उनमें भी इसी प्रकार जानना । ६४१४. आनत कल्पसे लेकर उपरिम प्रैवेयकतक मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति किसके होती है ? आनतादिके योग्य उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला जो कोई एक द्रव्यलिंगी मुनि मरकर आनतादिकमें उत्पन्न हुआ .उसके उत्पन्न होनेके पहले समयमें उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? अनुदिशादिकके. योग्य उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला जो कोई एक वेदकसम्यग्दृष्टि जीव अनुदिश आदिमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके पहले समयमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। ६४१५. एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थिति बाँधनेवाला जो कोई एक देव एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके पहले समयमें उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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