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गा० २२ ] . हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिसामित्त
२३५ तिरि०जोणिणी-मणुस्सतिय०-देव-भवणादि जाव सहस्सार०-पंचिंदिय-पंचिं०पजातस-तसपज्ज-पंचमण०--पंचवचि०-कायजोगि-ओरालि०-वेउन्वि०-तिण्णिवेद-चत्तारिक०-असंजद०-चक्खु०-अचक्खु०-पंचलेस्सा-भवसिदि०-सपिण-आहारीणमोघभंगो।
४१३. पंचिं०तिरि०अपज० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० उक्क० कस्स ? अण्ण० जो तिरिक्खो मणुस्सो वा उक्कस्सहिदि बंधिदूण हिदिघादमकादूण पंचिं०तिरिक्खअपज्जत्तएसु पढमसमयउववण्णो तस्स उक्कस्सहिदिविहती। सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० कस्स ? अण्ण तिरिक्खो मणुस्सो वा उक्कस्सद्विदि बंधिदूण अंतोमुहुरेण सम्मत् पडिवण्णो सम्मत्तेण सह सव्वलहु कालमच्छिय मिच्छत् गदो मिच्छत्तेण हिदिघादमकाऊण पंचिं०तिरि०अपज्जत्तएसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती । एवं मणुसअपज-चादरेइंदियअपज्ज-सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्त-सव्वविगलिंदिय-पंचिं० अपज्ज०-बादरपुढवि०अपज्ज०--मुहुमपुढविपज्जत्तापज्जत्तबादरआउअपज्ज०--सुहुमआउ०पज्जत्तापज्जत--बादरतेउ०पज्जचापज्जत्त-सुहुमतेउपज्जत्तापर्याप्त, पंचेन्द्रिय तियेंच योनिमती, सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य, मनुष्यिनी, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, वैक्रियिक काययोगी, तीनों वेदवाले, चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पाँच लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके पोषके समान भंग है।
विशेषार्थ--ऊपर जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें मिथ्यात्व आदि सब कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति ओषके समान बन जाती है, अतः इनकी प्ररूपणाको ओघके समान कहा है।
६४५३. पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई एक तिर्यंच या मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति बाँधकर
और स्थितिघात न करके पंचेन्द्रिय तियेच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ है उसके उत्पन्न होनेके पहले समयमें उक्त कमोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई एक तिर्यंच या मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति बाँधकर अन्तमुहूर्तकाल के द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ तथा सम्यक्त्वके साथ अतिलघु कालतक रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। पुनः मिथ्यात्वके साथ रहते हुए स्थितिघात न करके पंचेन्द्रिय तियेच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके पहले समयमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति होती है। इसी प्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य,बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्मपृथिवीकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्तक, बादर जलकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्तक,अमिकायिक,बादर अग्निकायिक पर्याप्तक, बादर अनिकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अनिकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म अग्निकायिक अपर्याप्तक, वायुकायिक, बादर वायुकायिक पर्याप्तक, बादर वायुकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तक,
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