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________________ गा० २२ । हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिअद्धाच्छेदो २०६ तो चरिमसमयमाणवेदयम्मि जहण्णसामित्तं किण्ण परूविजदि; अंतीमुहुत्त ण पडि विसेसाभावादो ? ण, तत्थ समयाहियावलियमेत्तणिसेगहिदीणं पढमहिदीए उवलंभादो । पढमहिदिणिसेगेसु गालिदेसु किरण दिजदे ? ण, तत्थ हेहा बद्धकम्माणं चरिमसमयट्ठिदिवंधादो हेडा वितएिणसेगाणमुवलंभादो। तम्हा समयूणदोआवलियमेत्तद्धाणं गंतूण चेव जहण्णहिदिविहत्ती होदि । * मायासंजलणस्स जहएणहिदिविहत्ती अद्धमासो अंतोमुहुत्तूणो । ३७९. जेण मायासंजलणचरिमझिदिबंधस्स णिसेया अंतोमुहुत्तणा अद्धमासमेत्ता तेण समऊणदोआवलियमेत्तपञ्चग्गसमयपबद्धस गालिदेसु अंतोमुहुत्तूणद्धमासमेत्तणिसेयहिदीओ लभंति तम्हा तत्थ जहण्ण हिदिविहत्ती होदि । सेसं सुगम, कोधमाणसंजलणेसु परूविदचादो। ॐ पुरिसवेदस्स जहएणहिदिविहत्ती अहवस्साणि अंतोमुहुत्त णाणि । $३८०. कुदो ? चरिमसमयसवेदएण बंधजहण्णहिदिवंधो अवस्समेत्तो । शंका-यदि निषेकोंकी स्थितिको ग्रहण करके जघन्य स्थितिविभक्ति कही जाती है तो मान वेदनके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिका स्वामित्व क्यों नहीं कहा, क्योंकि दोनों जगह दो महीनामें अन्तमुहूर्त काल कम है इसकी अपेक्षा दोनों जगह कोई विशेषता नहीं है ? - समाधान नहीं, क्योंकि मानवेदनके अन्तिम समयमें प्रथम स्थितिके निषेकोंकी भी एक समय अधिक प्रावलीप्रमाण स्थिति पाई जाती है, अत: वहाँ मानकी जघन्य स्थिति नहीं हो सकती है। शंका--तो फिर जिसने प्रथम स्थितिके निषेकोंको गला दिया है वह जघन्य स्थितिका स्वामी क्यों नहीं माना जाता है ? समाधान नहीं, क्योंकि वहाँ पहले बंधे हुए कर्मोंकी अपेक्षा अन्तिम समयमें जो स्थिति बन्ध होता है उसके नीचे भी उनके निषेक पाये जाते हैं। अतः एक समय कम दो आवली प्रमाण स्थान जाकर ही मानकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। * मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तम हर्त कम आधा महीना है। ३७६. चूँ कि मायासंज्वलनके अन्तिम स्थितिबन्धके निषेक अन्तर्मुहूर्त कम आधा महीना प्रमाण होते हैं, इसलिये एक समय कम दो आवलीप्रमाण नूतन समयप्रबद्धोंके गला देने पर अन्तमें निषेकोंकी स्थितियाँ अन्तर्मुहूर्त कम अधुमास प्रमाण प्राप्त होती हैं, इसलिये वहाँ जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। शेष कथन सुगम है; क्योंकि उसका कथन क्रोध और मान संज्वलनकी जघन्य स्थितिका कथन करते समय कर आये हैं। * पुरूषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तमहत कम आठ वर्षप्रमाण होती है। ६३८०. शंका-पुरुष वेदकी जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षप्रमाण क्यों होती है ? समाधान-क्योंकि सवेदभागके अन्तिम समयमें पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध आठ वर्षप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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