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________________ २१० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ णिसेयहिदीओ पुण अंतोमुहुत्त णअहवस्समेत्ताओ; अंतोमुहुत्ताबाहाए णिसेयरयणाभावादो । पुणो समयणदोआवलियमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूण अंतोमुहुत्त अवस्समेत्तणिसेयहिदीणमुवलंभादो। सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीणं जदि सत्तवाससहस्समेत्ताबाहा लब्भदि तो अहं वस्साणं किं लभामो त्ति पमाणेणिच्छागुणिदफले श्रोवट्टिदे जेण एगसमयस्स असंखेजदिभागो आगच्छदि तेण अण्णं वस्साणमाबाहा अंतोमुहुत्तमता ति ण घडदे ? ण एस दोसो, संसारावत्थं मोत्तण खवगसेढीए एवंविहणियमाभावादो। तं पि कुदो णव्वदे ? अहवस्साणि अतोमुहुत्त णाणि पुरिसवेदस्स जहण्णहिदिविहत्ती होदि ति सुचादी। एदमत्थपदमण्णत्थ वि वचव्वं ।। * छण्णोकसायाणं जहण्णहिदिविहत्ती सखेज्जाणि वस्माणि । १९३८१. एदस्स अत्थो वुच्चदे, अण्णदरवेदकसायाणमुदएण खवगसेढिं चडिय तदो जहाकमेण णव सयवेदमित्थिवेदं च खविय तदो छण्णोकसायखवणकालचरिमसमए चरिमहिदिकंडयचरिमफालीए संखेजवस्सपमाणाए सेसाए छण्णोकसायाणं जहण्णहिदिविहत्ती होदि। होता है । परन्तु निषेकोंकी स्थितियाँ अन्तमुहूर्त कम आठ वर्षप्रमाण ही होती हैं, कारण कि अन्तमुहूर्त प्रमाण आवाधामें निषेकोंकी रचना नहीं पाई जाती है । पुनः एक समय कम दो आवली प्रमाण काल ऊपर जाकर निषेकोंकी स्थितियाँ अन्तर्मुहूर्तकम आठ वर्ष प्रमाण पाई जाती हैं। शंका-सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिकी यदि सात हजार वर्ष प्रमाण आबाधा पाई जाती है तो आठ वर्षप्रमाण स्थितिकी कितनी आबाधा प्राप्त होगी, इस प्रकार त्रैराशिक विधिके अनुसार इच्छाराशिसे फलराशिको गुणित करके उसमें प्रमाणराशिका भाग देने पर चूँ कि एक समयका असंख्यातवां भाग आता है, इसलिये आठ वर्षकी आबाधा अन्तमुहूर्त प्रमाण होती है यह कथन नहीं बनता है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि संसार अवस्थाको छोड़कर क्षपकश्रेणीमें इस प्रकारका नियम नहीं पाया जाता है। शंका-यह भी किस प्रमाणसे जाना जाता है। समाधान-'पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्ष प्रमाण है। इन सूत्रसे जाना जाता है। यह अर्थपद अन्यत्र भी कहना चाहिये । * छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यात वर्षप्रमाण होती है। 1 ।३८१. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-किसी एक वेद और किसी एक कषायके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़कर तदनन्तर यथाक्रमसे नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका सय करके तदनन्तर छह नोकषायोंके क्षय करनेके अन्तिम समयमें उनके अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिकी संख्यात वर्ष प्रमाण स्थितिके शेष रहने पर छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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