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________________ २०८ - जयधवलासहिदे कसायपाहुडे .. [विदिनिहत्ती ३ भावेण अंतोमुहुत्त णं बेमासत्तु ववत्तीदो। कथं णिसेयाणं हिदिववएसो १ ण, णिसेयादो पुधभूदकालाभावेण णिसेयाणं हिदित्ताविरोहादो। एत्थ कालो पहाणो किण्ण कदो? ण, कम्मपरूवणाए कालस्स पहाणत्ताभावादो। जहा सम्मामिच्छत्तस्स एगा हिदी दुसमयकालपमाणा जहण्णहिदि विहत्ती होदि त्ति भणिदं तहा एत्थ वि अंतोमुहुत्तूणवेमासमेतहिदीओ समयूणवेआवलिऊणवेमासकालपमाणाओ ति किण परूविदं ? ण, चरिमणिसेयं मोत्त ण सेसणिसेयाणमेम्महंतकालाभावादो। उवदेसेण विणा वि णिसयाणं कालो अवगम्मदि त्ति वा मुत्तण भणिदो। * माणसंजलणस्स जहण्णहिदिविहत्ती मासो अंतोमुहुत्तूणो । ३७८. कुदो ? माणवेकिट्टीओ खविय तदियकिटिं वेदयमाणस्स तिस्से तदियकिट्टीपढमहिदीए समयाहियावलियसेसाए माणचरिमडिदिबंधी मासमेत्तो। तत्तो उवरि समऊणदोश्रावलियमेतद्धाणे चडिदे चरिमसमयपबद्धहिदीए अंतोमुहुत्त णमासमेत्तणिसेगाणमुक्लंभादो । जदि णिसंगहिदीओ चेव घेत्तण जहण्णहिदिविहत्ती वुच्चदि समाधान-नहीं, क्योंकि दो मास प्रमाण स्थितिके भीतर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधाकालमें कर्मनिषेक नहीं होनेसे जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तकम दो महीना बन जाती है। शंका-निषेकोंकी स्थिति संज्ञा कैसे हो सकती है ? समाधान नहीं, क्योंकि निषेकोंसे काल पृथग्भूत नहीं पाया जाता है अतः निषेकोंकी स्थिति संज्ञा होने में कोई विरोध नहीं आता है। शंका-यहाँ पर कालको प्रधान क्यों नहीं किया है ? समाधान नहीं, क्योंकि कर्मोंकी प्ररूपणामें कालको प्रधानता नहीं प्राप्त होती है। शंका-जिस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी दो समय कालवाली एक स्थिति जघन्य स्थिति विभक्ति होती है ऐसा कहा है उसी प्रकार यहाँ भी अन्तर्मुहुत कम दो महीना प्रमाण स्थितियाँ एक समय कम दो श्रावलियोंसे न्यून दो महीना काल प्रमाण होती हैं ऐसा क्यों नहीं कहा ? समाधान नहीं, क्योंकि अन्तिम निषेकको छोड़कर शेष निषेकोंका इतना बड़ा काल नहीं पाया जाता है । अथवा उपदेशके बिना भी निषेकोंका काल जाना जाता है इसलिये सूत्र में नहीं कहा है। * मान संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तर्मुहूर्त कम एक महीना है । ३७८. शंका-मानसंज्वलनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम एक महीना क्यों है ? समाधान-मानकी दो कृष्टियोंका क्षय करके तीसरी कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके उस तीसरी कृष्टिकी प्रथम स्थिति एक समय अधिक प्रावलीप्रमाण शेष रहने पर मानका अन्तिम स्थितिबन्ध एक महीना प्रमाण होता है । तदनन्तर एक समय कम दो आवली प्रमाण स्थान जाने पर अन्तिम समयप्रबद्धकी स्थितिके निषेक अन्तमुहूर्त कम एक महीना प्रमाण पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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