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________________ गा. २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिअाच्छेदो २०७ सेढिमारूढो तेण सवेदियदुचरिमसमए इत्थिणवुसयवेदचरिमफालीसु सव्वसंकमेण पुरिसवेदे संकामिदासु तदो सवेदियचरिमसमए •णqसयवेदस्स एगा हिंदी एगसमयकालपमाणा पत्तोदया सुद्धा चिहदि । ताधे णqसयवेदस्स जहण्णहिदिविहत्ती होदि । * कोहसंजलणस जहण्णष्टिदिविहत्ती वे मासा अंतोमुत्तूणा । ३७७. कदो ? चरित्तमोहक्खएण कोधसंजलणवेकिट्टीओ खविय कोधतदियकिटिं खवेमाणेण तिस्से पढमहिदीए समयाहियावलियाए सेसाए कोषसंजलणस्स जहण्णबंधे संपुण्णबेमासमेचे पबद्धताधे समयूणदोआवलियमेत्ता समयपबद्धा मुद्धा कोहस्स चिटुंत्ति । तम्मि समए उप्पादाणुच्छेदेण कोहचिराणसंतकम्मचरिमफालीए णिस्सेसविणासुवलंभादो । तदो बंधावलियाए वदिक्कताए समऊणावलियमेत्तफालीसु परसरूवेण संकामिदासु दुसमयणदोआवलियमेत्तसमयपबद्ध से णिस्सेसं परसरूवेण गदेसु ताधे समयूणदोआवलियाहि ऊणवेमासमेत्ता कोधचरिमसमयपबद्धस्स हिदी थक्कदिः ताधे कोधसंजलणस्स जहण्णहिदिदंसणादो। समयणदोआवलियाहि ऊणवेमासमेत्ता कोधजहण्णहिदिविहत्ती होदि त्ति अभणिय वेमासा अंतोमुत्तूणा त्ति भणिदं कथमेदं घडदे ? ण, बेमासअभंतरआबाहाए अंतोमुहुत्तपमाणाए कम्मणिसेगाउदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़ा है वह जब सवेद भागके द्विचरम समयमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अन्तिम फालियोंका सर्वसंक्रमणके द्वारा पुरुषवेदमें संक्रमण कर देता है तब सवेद भागके अन्तिम समयमें नपुंसकवेदकी उदयगत एक स्थिति एक समय कालप्रमाण शुद्ध शेष रहती है और तभी नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति विभक्ति होती है। * क्रोधमंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तमुहूर्त कम दो महीना है। ६३७७. शंका-कोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति अन्तमुहूर्त कम दो महीना क्यों है ? समाधान--चारित्रमोहनीयके क्षयके साथ क्रोधसंज्वलनकी दो कृष्टियोंका क्षय करके क्रोधकी तीसरी कृष्टिका क्षय करते हुए उसकी प्रथम स्थितिके एक समय अधिक प्रावली प्रमाण शेष रहने पर क्रोधसंज्वलनका जघन्य बन्ध पूरा दो महीना होता है और उस समय क्रोधके केवल एक समय कम दो आवली काल प्रमाण समयप्रबद्ध शेष रहते हैं। तथा उसी समय उत्पादानुच्छेद की अपेक्षा क्रोधकी प्राचीन सत्तामें स्थित अन्तिम फालिका पूरा विनाश प्राप्त होता है। तदनन्तर बन्धावलिके व्यतीत होने पर एक समय कम आवलि प्रमाण फालियोंके पररूपसे संक्तमित होने पर तथा दो समय कम दो आवली प्रमाण समयप्रबद्धोंके पूरी तरह पररूपसे प्राप्त होने पर उस समय एक समय कम दो आवलियोंसे न्यून दो महीना प्रमाण क्रोधके अन्तिम समयप्रवद्धकी स्थिति शेष रहती है, क्योंकि उसी समय क्रोधसंज्वजनकी जघन्य स्थिति देखी जाती है। शंका-क्रोधसंज्वलनकी एक समय कम दो आवलियोंसे न्यून दो महीना प्रमाण जघन्य स्थिति होती है ऐसा न कहकर जो अन्तर्मुहूर्त कम दो महीना जघन्य स्थिति कही है सो यह कैसे बन सकती है ? १ अप्रतौ दुसमयणादो-इति पाठः । २ अप्रतौ हिस्सेणं इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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