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________________ १४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ .. पमाणाणगसो। .. ३६०. कीरदे इदि एत्थ अज्झाहारो कायव्वो, अण्णहा मुत्तहाणुषपत्तीदो। चर्वषींसअणियोगद्दारेसु ताव उत्तरपयडीणमद्धाछेदं भणामि त्ति वुत्त होदि। पहममद्धाछेदो चेव किम वुच्चदै ? ण, अणवगयअद्धाछेदस्स उवरिमणियोगहाराणं परूवणाणुववत्तीदो। ॐ मिच्छत्तस्स उक्करसहिदिविहत्ती संत्तरिसागरोवमकोडाकोडीनी पंडिघुर्गणाओ। ३६१. एसो अद्धाछेदों एगसमयपद्धमस्सिदूर्ण पलं घिदो ण णाणासमयपंवद्ध तत्थ तिण्णिभंगप्पसंगादो । एगसमयपबद्धस्से त्ति कथं णव्वदें ? अकम्मसरूवेण हिदाणं कम्मइयवग्गणक्खंधाणं मिच्छत्तादिपञ्चएहि मिच्छत्तकम्मसरू वेणं अकमेणं परिणमिय सव्यजीवपदेसेसु संबंधाणं समयाहियसत्तवाससहस्समादि कादण णिरेंतरं समयुत्तरादिकमेण सत्तरिसागरोवमकोडाकोंडीमेत्तहिदिदसणादों । जर्मि समर्थपबद्ध मिच्छत्तकस्सहिदिकम्मक्खंधा अस्थि तत्थ एगसमयमादि कादूण जाव संतवाससहस्साणि त्ति एदेसु हिदिविसेसेसु एगो वि कम्पक्खंधो णंत्थि ति कुदों णव्वदे ? * अब प्रमाणका अनुगम करते हैं । ६३६०. 'पमाणाणुगमो' इस.सूत्रमें 'कीरदे क्रियाका अध्याहार कर लेना चाहिये, अन्यथा सूत्रका अर्थ नहीं बन सकता है । चौबीस अनुयोगद्वारोंमेंसे पहले उत्तर प्रकृतियोंके अद्धाच्छेद अर्थात् कालका कथन करते हैं यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है। शंका-सबसे पहले अद्धाच्छेदका ही कथन किसलिये किया जा रहा है ? समाधान-नहीं, क्योंकि अद्धाच्छेदका ज्ञान किये बिना आगेके अनुयोगद्वारोंका कथन नहीं बन सकता है, अतः सबसे पहले अद्धाच्छेदका कथन किया जा रहा है । * मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति पूरी सत्तर कोडाकोडी सागर है। ६३६१. यह अद्धाच्छेद एक समयप्रबद्धकी अपेक्षा कहा है नाना समयप्रबद्धोंकी अपेक्षा नहीं, क्योंकि नाना समयप्रबद्धोंकी अपेक्षा अद्धाच्छेदके कथन करने पर तीन भंग प्राप्त होते हैं। शंका-यह स्थिति एक समयप्रबद्धकी है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि जो कार्मणवर्गणास्कन्ध अकर्मरूपसे स्थित हैं वे मिथ्यात्वादि कारणोंसे मिथ्यात्वकर्मरूपसे एक साथ परिणत होकर जब सम्पूर्ण जीव प्रदेशोंमें सम्बद्ध हो जाते हैं तब उनकी एक समय अधिक सात हजार वर्षसे लेकर समयोत्तरादि क्रमसे निरन्तर सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण स्थिति देखी जाती है। इससे जाना जाता है, कि यह स्थिति एक समयप्रगद्धकी है। शंका-जिस समयप्रबद्ध में मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण कर्मस्कन्ध हैं वहाँ प्रथम समयसे लेकर सात हजार वर्ष प्रमाण स्थितिविशेषों में एक भी कर्मस्कन्ध नहीं है यह किस प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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