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गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिश्रदच्छेदो
१६६ * एदण अट्ठपदण।
३५६. एदमपदं कादूण उवरिमचउबीसअणियोगद्दारेहि हिदिविहत्तीए अणुगमं कस्सामो । तेसिं चउबीसहमणिोगद्दाराणं चुण्णिसुत्तम्मि पुव्वं परूविदाणं बालजणाणुग्गहह पुणरवि णामणिद्देसो कीरदे । तं जहा—अद्धाछेदो सव्वहिदिविहत्ती णोसव्वहिदिविहत्ती उक्कस्सहिदिविहत्ती अणुक्कस्सहिदिविहत्ती जहण्णहिदिविहत्ती अजहण्णहिदिविहत्ती सादियविहत्ती प्रणादियविहत्ती धुवहिदिविहत्ती अर्धवहिदिविहत्ती एयजीवेण सामित्वं कालो अंतरं गाणाजीवेहि भंगविचो भागाभागो परिमाणं खेचे पोसणं कालो अंतरं सण्णियासो भावो अप्पाबहुअं चेदि २४ । भुजगारपदणिक्खेव-वडि-हाणाणि त्ति एदाणि चत्तारि अणियोगद्दारोणि, एदेहि वि हिदिविहत्ती परूविजदि । अट्ठावीस अणियोगद्दाराणि किण्ण होति ति वुत्ते ण, चउबीसअणिओगद्दारेसु चेव एदेसिमंतब्भावादो। तं जहा-अजहण्णाणुक्कस्सहिदिविहत्तीसु भुजगारविहत्ती पविहा तत्थ उक्कस्सणोसक्कणविहाणपरूवणादो। भुजगारविसेसो पदणिक्खेवो, जहण्णुक्कस्सवढिहाणिपरूवणादो । पदणिक्खेवविसेसो वड्डी, वडिहाणीणं भेदपरूवणादो । वड्डिविसेसो हाणं, तत्थतणअवांतरभेदपरूवणादो । तदो हिदिविहत्तीए चउबीस चेव अणियोगदाराणि होति त्ति सिद्ध। करनेवाले कर्मोंको भी एक माननेमें कोई विरोध नहीं आता है ।
* इस अर्थपदके अनुसार स्थितिविभक्तिका अनुगम करते हैं ।
६३५६. इस अर्थपदका आलम्बन लेकर आगे कहे जानेवाले चौबीस अनुयोगद्वारोंके द्वारा स्थितिविभक्तिका अनुगम करते हैं । ये चौबीस अनुयोगद्वार चूर्णिसूत्रमें पहले कहे जा चुके हैं फिर भी बालजनोंके उपकारके लिये उनका फिरसे नामनिर्देश करते हैं। जो इस प्रकार हैअद्धाच्छेद, सर्वस्थितिविभक्ति. नोसर्वस्थितिविभक्ति, उत्कृष्ठस्थितिविभक्ति, अनुत्कृष्टस्थितिविभक्ति, जघन्यस्थितिविभक्ति, अजघन्यस्थितिविभक्ति, सादिस्थितिविभक्ति, अनादिस्थितिविभक्ति, ध्रु वस्थितिविभक्ति, अध्रु वस्थितिविभक्ति, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, सन्निकर्ष, भाव और अल्पबहुत्व।
शंका-भुजगार, पदनिक्षेप, वृद्धि और स्थान ये चार अनुयोगद्धार और हैं, क्योंकि इनके द्वारा भी स्थितिविभक्तिका कथन किया जायगा, अतः अट्ठाईस अनुयोगद्वार क्यों नहीं होते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि चौबीस अनुयोगद्वारों में ही इनका समावेश हो जाता है । यथाअजघन्य और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तियोंमें भुजगार स्थितिविभक्ति का अन्तर्भाव हो जाता है, क्योंकि उसमें उत्कर्षण और अपकर्षण विधिका कथन किया गया है । तथा भुजगार विशेषको पद निक्षेप कहते है,क्योंकि उसमें जघन्य और उत्कृष्टरूप वृद्धि और हानिका कथन किया गया है। पदनिक्षेप का एक विशेष वृद्धि है, क्योंकि इसमें वृद्धि और हानिके भेदोंका कथन किया गया है। तथा वृद्धिका एक विशेष स्थान है,क्योंकि इसमें स्थानगत अवान्तर भेदोंका कथन किया गयाहै । इसलिये स्थितिविभक्तिके चौबीस ही अनुयोगद्वार होते हैं यह सिद्ध हुआ।
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