SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहती ३ २८९. आहारि. असंखे०भागवड्डी हाणी० अवहि० श्रोघं । संखे०गुणवड्डी दोहाणी० जह० अंतोमु० । संखे०भागवडी० ज० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखे० भागो। असंखेजगुणहाणी० अोघं ।। एवमंतराणुगमो समत्तो । $ २६०. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिसो–ोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण असंखेज्जभागवड्डी-हाणि-अवहाणाणि णियमा अत्थि । सेसपदाणि भयणिज्जाणि । भंगा बादालीमुत्तरदुसदमेत्ता २४२ । एवं तिरिक्ख०सव्वेइ दिय-पुढवी०-बादरपुढवी०-बादरपुढवीअपज्ज०-सुहुमपुढवि०-सुहुमपुढविपज्जत्तापज्जत्त-आउ०-बादरआउ०-बादराउअपज्ज०-मुहुमाउ०-सुहुमाउपज्जत्तापज्जत्ततेउ०-बादरतेउ०-बादरतेउअपज्ज०-सुहुमतेउ०-सुहुमतेउपजत्तापज्जत्त-वाउ०-बादरवाउ०बादरवाउअपज्ज-मुहुमवाउ०-मुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त-वणप्फदि०-बादरवणप्फदि०बादरवणप्फदिपज्जत्तापज्जत्त-सुहुमवणप्फदिपज्जत्तापजत्त-णिगोद-बादरणिगोद०. बादरणिगोदपज्जत्तापज्जत्त-सुहुमणिगोद०-मुहुमणिगोदपज्जत्तापज्जत्त-बादरवणप्फदिपत्तेय - बादरवणप्फदिपत्तेयअपज्ज०- बादरणिगोदपदिहिद-बादरणिगोदपदिहिद Nomanim ६२८६. आहारक जीवोंके असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल ओघके समान है । संख्यातगुणवृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है तथा संख्यात भागवृद्धिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तरकाल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा असंख्यात गुणहानिका अन्तरकाल ओघके समान है। इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ। ६२६० नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है--ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय हैं। भंग दोसौ ब्यालीस होते हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यंच, सभी एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सुक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त, अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक अपर्याप्त, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, निगोद, बादर निगोद, बादर निगोद पर्याप्त, बादर निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त, बादर निगोद प्रतिष्ठित, बादर निगोद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy