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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे सेसपदाणं णत्थि अंतरं । आहार-आहारमिस्स० असंखे०भागहाणी. पत्थि अंतरं । एवमकसा०-जहाक्खाद०-सासण० । अणाहारीणं कम्मइयभंगो ।
$ २८१. इत्थिवेद० असंखे० भागवड्ढी० अवहि० ज० एगसमओ । दो वड्ढी-दोहाणीणं जह• अंतोमु० । उक्क. पणवण्णपलिदोवमाणि देसणाणि । असंखे०भागहाणी-असंखे०गुणहाणीणमोघमंगो । पुरिस० पंचिंदियभंगो। णवंस० असंखे भागहाणी-अवडिदाणं णिरओघं । सेसपदाणमोघभंगो । एवमसंजद० । शेष पदोंका अन्तरकाल नहीं है। श्राहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें असंख्यात भागृहानिका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। अनाहारक जीवोंके कार्मणकाययोगियोंके समान जानना चाहिए।
विशेषार्थ-पांचों मनोयोगों और पांचों वचनयोगोंका तथा एकेन्द्रियोंको छोड़कर शेष जीवोंके औदारिक काययोगका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है और विवक्षित किसी एक योगके रहते हए संख्यात भागवृद्धि आदि तथा संख्यात भागहानि आदि दो बार सम्भव नहीं अतः इनके संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धि इन दो वृद्धियोंका तथा संख्यात भागहानि, संख्यात गुणहानि
और असंख्यातगुणहानि इन तीन हानियोंका अन्तरकाल नहीं प्राप्त होता। काययोगमें असंख्यात भाग हानिका जो उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है वही यहां असंख्यात भागवृद्धि
और अवस्थितका उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिये । कोई एक त्रस जीव है उसने काययोगके रहते हुए संख्यात भागवृद्धि की । पुनः वह काययोगके साथ मर गया और एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर अनन्त काल तक घमता रहा । तदनन्तर वह त्रस हुआ और वहां उसने पुनः संख्यात भागवृद्धि की। इस प्रकार इस जीवके संख्यात भागवृद्धिका उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकार संख्यात गुणवृद्धि और दो हानियोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल यथायोग्य रीतिसे घटित कर लेना चाहिये । औदारिकमिश्रकाययोगका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है इसलिये इसमें सम्भव सब पदोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही प्राप्त होता है। वैक्रियिक काययोगका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है और एक योगके रहते हुए सख्यात भागवृद्धि
और संख्यात गुणवृद्धि इन दो वृद्धियोंका तथा संख्यात भागहानि और सख्यात गुणहानि इन दो हानियोंका दो दो बार होना सम्भव नहीं अतः वैक्रियिककाययोगमें इनका अन्तरकाल नहीं बतलाया। यही बात वैक्रियिकमिश्रकाययोगके सम्बन्धमें जानना चाहिये। कार्मणकाययोगमें अवस्थित पदका ही उत्कृष्ट काल तीन समय बतलाया है । अब यदि किसी कार्मणकाययोगीने पहले
और तीसरे समयमें अवस्थित स्थिति की तो उसके अवस्थितका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय पाया जाता है। यहां शेष पदोंका अन्तरकाल सम्भव नहीं। यही बात अनाहारकोंके जानना चाहिये । शेष कथन सुगम है।
२८१. स्त्रीवेदी जीवोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थित विभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और दो वृद्धियों और दो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । तथा उक्त सभीका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्य है। तथा असंख्यात भागहानि और असंख्यात गुणहानिका अन्तरकाल ओघके समान है। पुरुषवेदियों के पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । नपुंसकवेदियोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल सामान्य नारकियोंके समान है । तथा शेष पदोंका अन्तरकाल ओघके समान है। इसी प्रकार असंयत
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