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________________ १५५ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए वड ढीए अंतर ६ २७६. पंचमण-पंचवचि० असंखे भागवड्ढी० अवहि० अंतरं के० १ ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु । असंखे०भागहाणी० ज० एगसगो, उक्क० अंतोमु० । सेसदोवड्ढी-तिण्णिहाणीणं णत्थि अंतरं । एवमोरालियकायजोगीणं । ___$२८०. कायजोगीसु असंखे भागवड्ढी० अवहि० ज० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे भागो । असंख०भागहाणी० ज० एगसमो, उक्क० अंतोमु० । दोवड्ढी-दोहाणीणं जह० एगसमओ अंतोमु०, उक्क० अणंतकालमसंखजा पोग्गलपरियट्टा । असंख०गुणहाणी० णत्थि अंतरं । ओरालियमिस्स० असंख०भागवड्ढी० अवहि० ज० एगसमो, उक० अंतोमु० । असंखजभागहाणी० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । संखे०भागवड्ढी जह० एगसमओ, उक्क० अंतोम० । दोहाणी. सं०गुणवड्ढी० जह० अंतोम०, उक्क० अंतोम० । वेउविय० असंखे०भागवड्ढी० हाणी अवहि० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । सेसदोवड्ढी-दोहाणीणं पत्थि अंतरं । वेउब्धियमिस्स० असंखे० भागवड्ढी हाणी• अवहि जह• एगसमो, उक्क० अंतोमु० । सेसपदेसु णत्थि अंतरं । कम्मइय० अवहि० ज० उ० एगसमओ । विभक्तियोंका इससे कम अन्तरकाल नहीं पाया जा सकता है। तथा त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंके संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धिका जघन्य अन्तरकाल जो एक समय बतलाया है सो यह परस्थानकी अपेक्षा जानना चाहिये जिसका खुलासा ओघ प्ररूपणाके समय कर आये हैं। २७६. पाँचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यात भागहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। तथा शेष दो वृद्धियों और तीन हानियों का अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार औदारिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । २८०. काययोगियोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रेमाण है। असंख्यात भागहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ।दो वृद्धियों और दो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अन्तमुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। असंख्यात गुणहानिका' अन्तरकाल नहीं है। औदारिकमिश्र काययोगियोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। संख्यात भागवृद्धिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। तथा दो हानियों और संख्यात गुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। वैक्रियिककाययोगियोंमें असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । तथा शेष दो वृद्धियों और दो हानियोंका अन्तरकाल नहीं है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। तथा शेष पदोंका अन्तरकाल नहीं है। कामणकाययोगियोंमें अवस्थितविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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