SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा० २२ ] stefanite as te कालो १४३ उक्क० वे समया । दो बड्डी० दो हाणी० केव० १ जहण्णुक्क० एगसमश्र । असंखे ० भागहाणी के० ? ज० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमारिण देसूणाणि । वडि० के० १ जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुद्दत्तं । एवं सव्वणेरइ० णवरि असंखेज्जभागहाणीए उक्कस्स० सगसगुक्कसहिदी देसूणा । $ २६१. तिरिक्खेतिण्णि वड्डी संखेज्जगुणहाणी अहि० ओघं । श्रसंखे ० भागहाणी ज० एगसमओ, उक्क० तिष्णि पलिदोवमाण सादिरेयाणि । संखेज्जभागहाणी जहरणुक्क एगसमओ । एवं पंचिदियतिरिक्खतियस्स । णवरि संखेज्ज - भागवड्ढि - संखेज्जगुणबड्डीणं जहण्णुक्क० एगसमओ । पंचिदियतिरिक्खापज्ज० तिण्णिवड्डि- दोहाणि श्रवद्विदाणं णिरोघभंगो । श्रसंखेज्जभागहाणी के० १ जह० एगसमओ, उक्क अंतोमुहुत्तं । एवं मरणुस पज्ज० । मणुसतिय० पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो | णवरि संखेज्जभागहाणी असंखे० गुणहाणी श्रघं । ० काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । दो वृद्धियों और दो हानियोंका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । अवस्थितविभक्तिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सभी नारकियों के जानना चाहिये | इतनी विशेषता है कि सर्वत्र असंख्यात भागद्दानिका उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण होता है । $ २६१. तिर्यों में तीन वृद्धियों संख्यातगुणहानि और अवस्थितविभक्तिका काल श्रधके समान है । असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । तथा संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसी प्रकार पचेन्द्रियतियंच त्रिकके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धि का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तिकों में तीन वृद्धियों, दो हानियों और अस्थितविभक्तिका काल सामान्य नारकियोंके समान है । तथा असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकों के जानना चाहिये । तथा मनुष्य त्रिकके पंचेन्द्रिय तिर्यंच त्रिक के समान काल है । इतनी विशेषता है कि इनके संख्यात भागहानि और असंख्यातगुणद्दानिका काल ओघ समान है । विशेषार्थ - असंख्यात भागवृद्धि अद्धाक्षय और संक्लेशक्षय दोनों से प्राप्त हो सकती है किन्तु संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धि केवल संक्लेशज्ञयसे ही प्राप्त होती है अतः नारकियों में असंख्यात भागवृद्धिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय तथा शेष दो वृद्धियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय बन जाता है । इसी प्रकार संख्यात भागद्दानि और संख्यातगुणहानि अन्तिम काण्डककी अन्तिम फालिके पतन के समय ही होती है अतः इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । नरकमें असंख्यात भागद्दानिका जघन्य काल एक समय ओघ के समान घटित कर लेना चाहिये। जिस नारकीने नरकमें उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त काल बाद वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त कर लिया है और जब में अन्तर्मुहूर्त काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy