SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२.] द्विदिविहत्तीए घड्ढीए कालो १४१ वेदय० असंखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी कस्स ? अण्णदरस्स । संखेज्जभागहाणी कस्स ? अणंताणुबंधि० विसंजोएतस्स दंसणतियं खवेंतस्स वा । सम्मावि० तिण्णिहाणीयो कस्स ? अण्णद० । एवं सामित्ताणुगगो सभत्तो। $ २५६. कालाणुगमेण दुविहो गिद्द सो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण तिणि वडी केवचिरं कालादो होंति ? जह० एगसमयो, उस्क, वे समया । असंखे० भागहाणी केवचि० ? जह० एयसपओ, उक्क० तेवहिसागरोमसदं अंतोमुहुत्तब्भहियं पलिदो० असंखे०भागे० सादिरेगं । संखे० भागहाणी केव• ? जह० एगसमओ, उक्क० उक्कस्ससंखेज्जं दुरूवूणं । दो हाणी केव० ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । अवहि० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । एवमचक्खु०-भवसि०-तस-तसपज्ज० । कषायोंका उपशम करनेवाले किसी भी जीवके होती है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि किसके होती है ? किसी भी जोबके होती है। संख्यात भागहानि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करनेवाले जीवके या तीन दर्शनमोहनीयका क्षय करनेवाले जीवके होती है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें तीनों हानियां किसके होती हैं ? किसी भी जीवके होती हैं। इस प्रकार स्वामित्वानुगम समाह हुआ। ६२५६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है—ोधनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा तीन वृद्धियोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। असंख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तुमुहूर्त और पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक एक सौ त्रेसठ सागर है। संख्यात भागहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो कम उत्कृष्ट संख्यात समय प्रमाण है। संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि इन दो हानियोंका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । इसी प्रकार अचक्षुदर्शनवाले, भव्य, त्रस और त्रस पर्याप्तक जीवोंके जानना चाहिये। विशेषार्थ-जब कोई जीव अद्धाक्षय या संक्लेशक्षयसे सत्कर्म के ऊपर एक समय तक असंख्यातवें भाग, संख्यातवें भाग या संख्यातगुणी स्थितिको बढ़ाकर बांधता है और दूसरे समयमें अल्पतर या अवस्थित स्थितिको प्राप्त करता है तब उसके असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। जब कोई एक जीव पहले समयमें अद्धाक्षयसे और दूसरे समयमें संक्लेशक्षयसे असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिको बढ़ाकर बांधता है तथा तीसरे समयमें अल्पतर या अवस्थित स्थितिवन्ध करने लगता है तब उसके असंख्यातभागवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय प्राप्त होता है। जब कोई एक द्वीन्द्रिय जीव संक्लेशक्षयसे एक समय तक संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिको बढ़ाकर बांधता है और दूसरे समयमें मरकर तथा त्रीन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर पूर्व स्थितिसे संख्यातवें भाग अधिक तेइन्द्रियोंके योग्य जघन्य स्थितिको बांधता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy