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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए भुजगारे अंतरं १२३ $ २१८. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्द े सो - श्रघेण देण य । तत्थ श्रघेण भुज ० - अप्पद ० - अव०ि अंतरं केवचिरं० ? णत्थि अंतरं । एवं तिरिक्ख० - सव्वएदिय - पुढवि० - बादरपुढवि० - चादर पुढविअपज्ज० मुहुमपुढवि० मुहुम पुढविपज्जत्तापज्जत्त आउ०- बादरआउ०- बादरआउअपज्ज० - मुहुमआउ० - सुहुम उपजत्तापज्जत्तविशेषार्थ-न - नाना जीवोंकी अपेक्षा कालका विचार करनेपर से तीनों स्थितियां निरन्तर हैं, अतः उनका काल सर्वदा कहा । मार्गणाओं में कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें ये सर्वदा पाई जाती हैं। जैसे सामान्य तिर्यंच आदि । कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें अल्पतर और अवस्थित स्थितियां तो सर्वदा पाई जाती हैं पर भुजगार स्थिति सान्तर है, कभी होती और कभी नहीं भी होती। यदि होती है तो कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक होती है। जैसे सामान्य नारकी आदि । किन्तु मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी ये दो मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें भुजगार स्थितिका उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, क्योंकि ये दोनों मार्गणाएं ही संख्यातसंख्यावाली हैं । कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें तीनों स्थितियां सान्तर हैं क्योंकि वे मार्गणाएं स्वयं सान्तर हैं, अतः उनमें भुजगारका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रेमाण है । तथा अल्पतर और अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्के संख्यातवें भागप्रमाण है । यहां यह शंका होती है कि ऐसी मार्गणाओंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और भंगविचय अनुयोगद्वार में तीनों को भजनीय बतलाया है अतः उनमें अल्पतर और अवस्थित का उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण नहीं बनना चाहिये । सो इसका यह समाधान है कि जब उक्त मार्गणावाले जीव निरन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक होते रहते हैं तब इनमें कदाचित् अल्पतर और अवस्थित स्थितियां नाना जीवों की अपेक्षा उक्त काल तक सर्वदा पाई जा सकती हैं अतः इनका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण बन जाता है । कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें निरन्तर अल्पतर स्थिति ही पाई जाती है। अत: उनमें अल्पतर स्थितिका काल सर्वदा है । यथा-आनत कल्प आदिके देव आदि । कुछ ऐसी मार्गाए हैं जिनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तथा जिनमें एक अल्पतर स्थिति ही पाई जाती है, अतः उनमें अल्पतर स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण जानना । यथा - आहारकाययोग आदि । किन्तु आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इसमें अल्पतर स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण ही प्राप्त होता है । तथा कुछ ऐसी मार्गणाएं हैं जिनका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और इनमें एक अल्पतर स्थिति ही सम्भव है, अतः इनमें अल्पतर स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा । किन्तु इन मार्गणाओं में सासादन सम्यग्दृष्टि मार्गणा ऐसी है जिसका जघन्य काल एक समय ही है, अतः इसमें अल्पतर स्थितिका जघन्य काल एक समय जानना चाहिये । इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ । $ २१८. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेश निर्देश | उनमें से ओघ की अपेक्षा भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थिति विभक्तिवाले जीवों का अन्तरकाल कितना है ? इनका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यंच, सभी एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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