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________________ गा० २२.] द्विदिविहत्तीए अंतर ८६ मिस्स० मोह० उक्क० ओघं । अणुक्कं० ज० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । एवमकसा० - जहाक्खादसंजदे त्ति । $ १५७. अवगद ० मोह० उक्क० ओघं । अणुक्क० जह० एगसमत्रो, उक्क ० छम्मासा । एवं मुहुमसंपराय० वत्तव्वं । उवसम० उक्क० ओघं । अणुक्क० जह० समओ, उक्क० चडवीसमहोरते । अथवा अकसा० - जहाक्खांद० - अवगद ०सुहुम० मोह० उक्क० वासपुधत्त । उवसम० चउवीसमहोरत े ० सादि० । सासण० पलिदो० असंखे० भागो । खइय० छम्मासा । एवमुक्कस्सओ अंतराणुगमो समत्तो । और आहारकमिश्र काययोगी जीवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल ओघ के समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्ष पृथक्त्व है । इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये । 1 $ १५७. अपगतवेदियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल ओघ के समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । इसी प्रकार सूक्ष्मसां परायिक संयत जीवोंके कहना चाहिये । उपशमसम्यग्दृष्टियों में उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल श्रोघके समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस दिन रात है । अथवा, अकषायी, यथाख्यातसंयत, अपगतवेदी और सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिराले जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है, उपशमसम्यग्दृष्टियों में साधिक चौबीस दिनरात है । सासादन सम्यग्दृष्टियों में पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है और क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में छह महीना है । विशेषार्थ — उत्कृष्ट स्थितिवाले जीत्र यदि संसार में न हों तो कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक अंगुल असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक नहीं होते हैं अतः यहाँ उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं अतः इनका अन्तरकाल नहीं कहा। मूल सातों पृथिवियोंके नारकी आदि और जितनी मार्गेणाएँ गिनाई हैं उनमें यह व्यवस्था बन जाती है अतः उनकी प्ररूपणाको ओघ के समान कहा । तथा इनके अतिरिक्त और जितनी मार्गणाएँ हैं उनमें भी उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर ओधके समान है अतः उन सबमें उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा । हाँ इन मार्गणाओं में अनुत्कृष्ट स्थितिका भी अन्तरकाल पाया जाता है जिसका खुलासा निम्न प्रकार है - लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। वैक्रियिक मिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है । आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है । उपशमश्रेणीका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । क्षपक श्रपगतवेद और सूक्ष्मसंपरायसंयमका जघन्य १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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