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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे .. [हिदिविहत्ती ३ १५५. अंतराणुगमो दुविहो-जहण्णो उक्सओ चेदि । उक्कसए पयदं । दुविहो णिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोह० उक्कस्सहिदिविहत्तियाणमंतरं के० १ जह० एगसमो, उक० अंगुलस्स असंखे० भागो। अणुक० पत्थि अंतरं। एवं सत्तपुढवि०-सव्वतिरिक्ख०-मणुसतिय-देव-भवणादि जाव सबढ०-सव्वएइंदियसव्वपिगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-सव्वपंचकाय-सव्वतस-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि०ओरालि०-ओरालियमिस्स०-वेउब्विय०-कम्मइय-तिण्णिवेद०-चत्तारिक०-मदि-सुदभण्णाण०-विहंग०-प्राभिणि-सुद०-ओहिल-मणपज्ज०-संजद०-समाइय-छेदो०-परिहार०असंजद०-संजदासंजद०-चक्खु०-अचक्खु०-ओहिदसण०-छलेस्सा-भवसिद्धि०-[अभव०-] सम्मादि०-खइय०-वेदय०-मिच्छादि०-सण्णि-असण्णि-आहारि-अणाहारि त्ति । ६१५६. मणुसअपज्ज. मोह० उक्क० ओघभंगो । अणक्क० [ जह० एगसमओ, उक्क०] पलिदो० असंखेभागो । एवं सासण-सम्मामि०दिहि त्ति ।वेउव्वियमिस्स० मोह० उक० ओघं । अणुक्क० जह• एगसमो, उक्क० बारस मुहुत्ता। आहार-आहोर ६१५५. अन्तरानुगम दो प्रकारका है-जवन्य और उत्कृष्ट । उनमें से उत्कृष्ट अन्तरानुगमका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमें से ओघनिर्देशकी अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी तियेच, सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी ये तीन प्रकारके मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, सभी पांचों स्थावरकाय, सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, कार्मणकाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशद्धिसंयत, असंयत, संयतासंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, छहों लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, मिथ्य दृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । १५६. मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल बारह मुहूर्त है। आहारककाययोगी, १ मूलप्रतौ विगलिंदियपज्जपंचिं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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