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________________ गा० २२ ] वित्तीकाल जह० ज० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अज० सव्वद्धा । - १५०. तिरिक्ख० मोह० जह० अज० सव्वद्धा । एवं सव्वएइंदिय- पुढवि०बादरपुढवि० - बादरपुढवित्रपज्ज० - सुहुमपुढवि० पञ्जत्तापज्जत्त आउ०- बादरआउ०- बादरआउअपज्ज०-सुहुमआउ०- पज्जत्तापज्जत्त - ते ० [ बादरतेउ०- ] बाद रतेउपज ० - सुहुमतेउ०पञ्जत्तापञ्जत्त-वाउ०- बादरवाउ ० - बादरवाउअपज्ज० मुहुमवाउ ० - पज्जत्तापज्जत्त - बादरवणफदिपतेय तस्सेव अपज्ज० - सव्ववणष्पदि सव्वणिगोद-ओरालियमिस्स ० -कम्मइय०मदि- सुदअण्णाण -संजद - तिण्णिले० - अभवसि० -मिच्छादि० श्रसण्णि० - अणाहारिति । 0 $ १५१. मणुस पज्ज० मोह० जह० ज० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे भागो । अज० के० ? जह० खुद्दाभवग्गहणं विसमरणं एगसमओवा, उक्क ० पलिदो० असंखे० भागो । ८ $ १५२. चत्तारिकायबादरपज्ज० - बादरवणप्फदिपत्त यपज० जह० ज० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अज० सव्वद्धा । वाले जीवों का जन्य सत्त्वकाल एक समय है और उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल सर्वदा है । $ १५० तिर्यंचों में मीहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवों का सत्त्वकाल सर्वदा है । इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त, अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक अपर्याप्त, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त सभी वनस्पतिकायिक, सभी निगोद, श्रदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मंणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । $ १५१. मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय है और उत्कृष्ट सत्त्वकाल आवलीका असंख्यातवाँ भाग है । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य दो समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण या एक समय है और उत्कृष्ट पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । ९१५२. पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय बादर पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रेत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय है और उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवों का सत्त्वकाल सर्वदा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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