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________________ ८१ गा• २२] हिदिविहत्तीए कालो जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अणुक्क० के० १ सव्वद्धा । एवं सव्वणिरय-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्वतिय-देव-भवणादि जाव सहस्सार०-पंचिंदियपंचि०पज्जा-तस-तसपज्जा-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालिय०-वउव्विय०तिण्णिवेद०-चत्तारिक०-मदि-सुदअण्णाण-विहंग०-असंजद०-चक्षु०-अचक्खु०-पंचले०-भवसि०-अभवसि०-मिच्छाइहि-सण्णि-आहारि त्ति ? १४३. पंचिंदियतिरि अपज० मोह. उक्क० केव• ? जह० एगसमओ,उक्क० आवलि. असंखे०भागो। अणुक्क० सबदा। एवं सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज०-पंचकाय-तसअपज०-ओरालियमिस्स०-कम्मइय-आभिणि०-सुद०ओहि०-संजदासंजद-ओहिदंस०-मुक्क०-सम्मादि०-चेदय-असण्णि-अणाहारि त्ति । १४४. मणुसतिय० मोह० उक्क० के० ? जह० एगसमो , उक्क० अंतोमुहुत्तं । अणुक्क० सव्वद्धा । मणुसअपज्ज० मोह० उक्क० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। अणुक्क० के०? जह. खुद्दाभवग्गहणं समऊणं । उक्क० पलिदो० असंखे भागो। आणदादि जाव सव्वह० मोह० उक्क० केव० ? ज० एग अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभिक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? सर्वकाल है। इसी प्रकार सभी नारकी, सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तियंच,पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच, पंचेन्द्रिय योनिमती तिर्यंच, सामान्य देव,भवनवासियोंसे लेकर सहस्त्रार स्वर्ग तकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, स, त्रसपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, कृष्ण आदि पांच लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके कहना चाहिये। ६१४३. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट विभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल सर्वदा है। इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, पांचों स्थावरकाय, त्रस अपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी,कामणकाययोगी,आभिनिवोधिकज्ञानी,श्रतज्ञानी,अवधिज्ञानी, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । १४४. सामन्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनी इन तीन प्रकारके मनुष्यों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल सर्वदा है। लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंमें मोहनी की उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है। जघन्य एक समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट पल्योपमके असंख्यातवें ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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