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________________ ८२ जयधवलासहिदे कसा पाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ समो, उक्क० संखेज्जा समया । अणुक्क० सव्वद्धा । एवं मणपज्ज० - संजद ० सामाइय-छेदो०- परिहार० -खइयसम्माइट्ठित्ति । ९ १४५. वेडव्वियमिस्स० मोह० उक्क० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अणुक्क० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । एवमुवसम० - सम्मामि० वत्तव्वं । $ १४६. अवगद ० मोह० उक्क० जह० एगसमझो, उक्क० संखेज्जा समया । अणुक्क० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । एवमकसा० - मुहुमसांपरा ० - जहक्खादेति । [ एवं आहार - आहारमि० । णवरि आहारमि० अणुक्क० जह० अंतोसु० । ] १४७. सासण० मोह० उक्क० जह० एगसमझो, उक्क० आवलि० असंखे ० - भागो । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । O 0 एवमुक्कस्सकालाणुगमो समत्तो । भागप्रमाण है । नत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जवन्य एक समय और उत्कृष्ट संख्यात समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल सर्वदा है । इसी प्रकार मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहार विशुद्धिसंयत और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों के जानना चाहिये | $ २४५. वैक्रियिकमि श्रकाययोगी जीवों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका सत्त्वकाल कितना है ? जवन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसी प्रकार उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों के कहना चाहिये । $ १४६. अपगतवेदियों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल संख्यात समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवों का जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अकषायी, सूक्ष्म सांप रायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवों के जानना चाहिए। इसी प्रकार आहारक व Maratगयोंके जानना चाहिए । परन्तु आहारकमिश्र काययोगमें अनुत्कृष्ट स्थिति विभक्तिवालोंका जघन्य सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त है । ९ १४७. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल आवली के असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विशेषार्थ -- नाना जीवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक पल्यके असंख्यातवें भाग कालतक होता है । इसके पश्चात् एक भी जीव मोहनी की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला नहीं रहता, इसलिए नाना जीवोंकी अपेक्षा मोहनीयकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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