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६६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, १२१. अणुभागवुड्ढिदसणादो।
माणसंजलणमणंतगुणं ॥ १२१ ॥
मायासंजलणजहण्णबंधपदेसादो हेट्ठा अंतोमुहुत्तमोदरिय द्विदमाणजहण्णबंधग्गहणादो। एत्थ वि अणंतगुणत्तस्स कारणं पडिसमयमणंतगुणाए सेडीए हेडिमाणुभागबंधवुड्ढी।
कोधसंजलणमणंतगुणं ॥ १२२ ॥ तत्तो हेट्ठा अंतोमुहुत्तमोदिण्णजहण्णबंधग्गहणादो।
मणपज्जवणाणावरणीयं दाणंतराइयं च दो वि तुल्लाणि अणंतगुणाणि ॥ १२३ ॥
कुदो ? कोधसंजलण जहण्णाणुभागबंधो बादरकिट्टी, एदासिं दोण्णं पयडीणमणुभागो पुण फद्दयं; एदासिं सुहुमसांपराइयचरिमजहण्णबंधस्स फद्दयत्तं मोत्तण किट्टित्ताभावादो। तेण कोधसंजलणजहण्णबंधादो अप्पिद-दोपयडीणं जहण्णबंधो अणंतगणो ।
ओहिणाणावरणीयं ओहिदंसणावरणोयं लांभंतराइयं च तिण्णि वि तुल्लाणि अणंतगुणाणि ॥ १२४ ॥
कुदो? पयडिविसेसेण । सो कधं णव्वदे ? खषगसेडीए देसघादिबंधकरणेसु बन्ध अनन्तगुणा है । इस प्रकार सर्वत्र अनिवृत्तिकरण कालके भीतर अनुभागकी वृद्धि देखे जानेसे उक्त कथनका परिज्ञान होता है।
उससे मान संज्वलन अनन्तगुणा है ॥ १.१॥
क्योंकि, माया संज्वलनके जधन्य बन्ध सम्बन्धी स्थानसे पीछे अन्तमुहूर्त जाकर स्थित मान संज्वलनके जघन्य बन्धका यहाँ प्रहण किया है। यहाँ भी अनन्तगुणेका कारण प्रतिसमय अनन्तगुणी श्रेणिरूपसे पीछे अनुभागबन्धकी वृद्धि है।
उससे क्रोध संज्वलन अनन्तगुणा है॥ १२२ ॥ क्योंकि, उससे पीछे अन्तर्मुहूर्त जाकर स्थित जघन्य बन्धका यहाँ ग्रहण किया है।
उससे मनापर्ययज्ञानावरणीय और दानान्तराय ये दोनों ही प्रकृतियाँ तुल्य होकर अनन्तगुणी हैं ॥ १२३ ॥
क्योंकि, संज्वलन क्रोधका जघन्य अनुभागबन्ध बादर कृष्टि स्वरूप है, परन्तु इन दोनों प्रकृतियोंका अनुभ
कि, इनका सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानके अन्तिम समयमें जो जघन्य बन्ध होता है वह स्पर्धकरूप होता है वह कृष्टि स्वरूप नहीं हो सकता इसलिये संज्वलन क्रोधके जघन्य बन्धकी अपेक्षा विवक्षित इन दो प्रकृतियोंका जघन्य बन्ध अनन्तगुणा है।
अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय, ये तीनों ही प्रकृतियां तुल्य होकर उनसे अनन्तगुणी हैं । १२४ ॥
इसका कारण प्रकृतिविशेष है। शंका-वह किस प्रमाण से जाना जाता है ? समाधान-क्षपक श्रेणिके भीतर देशघातिबन्धकरणविधानमें जो यह बतलाया गया है
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