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________________ ६०] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, ११७. संपहि एदेण अप्पावहुएण सूचिदउत्तरपयडिसत्थाणुक्कस्साणुभागअप्पाबहुअंवत्तइस्सामो। तं जहा-सव्वतिव्वाणुभागं केवलणाणावरणीयं । आभिणियोहियणाणावरणीयं अणंतगुणहीणं । [सुदणाणावरणीयं अणंतगुणहीणं ] ओहिणाणावरणीयमणंतगुणहीणं । मणपजवणाणावरणीयमणंतगुणहीणं । सव्वतिव्वाणुभागं केवलदंसणावरणीयं। चक्खुदंसणावरणीयं अणंतगुणहीणं । अचक्खुदंसणावरणीयमणंतगुणहीणं। ओहिदसणावरणीयमणंतगुणहीणं । थीणगिद्धी अणंतगुणहीणा। णिद्दाणिद्दा अणंतगुणहीणा। पयलापयला अणंतगुणहीणा । णिद्दा अणंत गुणहीणा । पयला अणंतगुणहोणा। सव्वतिव्वाणुभागं सादमसादमणंतगुणहीणं । सम्पतिव्वाणुभागं मिच्छत्तं । अणंताणुबंधिलोभो अणंतगुणहीणो। माया विसेसहीणा। कोधो विसेसहीणो । माणो विसेसहीणो । संजलणाए लोभो अणंतगुणहीणो। माया विसेसहीणा। कोधो विसेसहीणो । माणो विसेसहीणो। एवं पञ्चक्खाणचदुकापञ्चक्खाणचदुक्कस्स च वत्तव्यं । णqसयवेदो अणंतगुणहीणो। अरदी अणंतगुणहीणा । सोगो अणंतगुणहीणो। भयमणंतगुणहीणं । दुगुंछा अणंतगुणहीणा । इत्थिवेदो अब इस अल्पबहुत्वसे सूचित होनेवाला उत्तर प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागविषयक स्वथान अल्पबहुत्व कहते हैं । यथा-केवलज्ञानावरण सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है। उससे आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय अनन्तगुणी हीन है। [ उससे श्रुतज्ञानावरणीय अनन्तगुणी हीन है। ] उससे अवधिज्ञानावरणीय अनन्तगुणी हीन है । उससे मनःपर्ययज्ञानावरणीय अनन्तगुणी हीनहै। केवलदर्शनावरणीय सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है। उससे चक्षुदर्शनावरणीय अनन्तगुणी हीन है । उससे अचक्षुदर्शनावरणीय अनन्तगुणी हीन है। उससे अवधि दर्शनावरणीय अनन्तगुणी हीन है। उससे स्त्यानगृद्धि अनन्तगुणी हीन है। उससे निद्रानिद्रा अनन्तगुणी हीन है। उससे प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी हीन है। उससे निद्रा अनन्तगुणी हीन है। उससे प्रचला अनन्तगुणी हीन है। सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है। उससे असातावेदनीय अनन्तगुणी हीन है। मिथ्यात्व प्रकृति सबसे तीन अनुभागसे युक्त है। उससे अनन्तानुबन्धी लोभ अनन्तगुणा हीन है। उससे अनन्तानुबन्धी माया विशेष हीन है। उससे अनन्तानुबन्धी क्रोध विशेष हीन है । उससे अनन्तानुबन्धी मान विशेष हीन है। उससे संज्वलनलोभ अनन्तगुणा हीन है। उससे संज्वलन माया विशेष हीन है। उससे संज्वलन क्रोध विशेष हीन है । उससे संज्वलन मान विशेष हीन है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चतुष्क और अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके विषयमें कहना चाहिये। अप्रत्याख्यानावरण मानसे नपुंसकवेद अनन्तगुणा हीन है। उससे अरति अनन्तगुणी हीन है। उससे शोक अनन्तगुणा हीन है। उससे भय अनन्तगुणा हीन है। उससे जुगुप्सा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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