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________________ arखंडागमे वेयणाखंड एदिस्से उदरण सचेयण व्व णिदुवलंभादो | पयला अनंतगुणहीणा ॥ १०६ ॥ एदिस्से उदएण बोलंतस्स वट्ठाए वहंतस्स वा सीसस्स अइथोवसंचालदंसणादो । अजसकित्ती णीचागोदं च दो वि तुल्लाणि अनंतगुणहीणाणि ॥ १०७ ॥ कुदो ? साभावियादो। ण च सहाओं परपज्ञ्जणियोगारिहो । णिरयगई अनंतगुणहीणा ॥ १०८ ॥ कुदो ? णेरइयभावणिव्वत्तयत्तादो । तिरिक्खगई अनंतगुणहीणा ॥ १०६ ॥ ५८ ] कुदो ? णेरइयगई व्व तेत्तीस सागरोवमफलुप्पायणसत्तीए अभावादो, णिरयगदी व एदिस्से दुक्खकारणत्ताभावादो वा । इत्थवेदो अनंतगुणहीणो ॥ ११० ॥ कुदो ? अरइगभमुम्मरग्गिसमदुक्खुप्पायणादो | पुरिसवेदो अनंतगुणहीणो ॥ १११ ॥ कुदो ? तणग्गिसमथोवदुक्खुप्पाणादो । क्योंकि, इसके उदय से सचेतन के समान निद्रा उपलब्ध होती है । उससे प्रचला अनन्तगुणी हीन है ।। १०६ ॥ क्योंकि इसके उदयसे बोलते हुए, बैठे हुए अथवा चलते हुए जीवके सिरका संचार बहुत स्तोक काल तक देखा जाता है । उससे अयशःकीर्ति और नीचगोत्र ये दोनों प्रकृतियाँ तुल्य होकर अनन्तगुणी हीन हैं ॥ १०७ ॥ क्योंकि, ऐसा स्वभाव है, और स्वभाव दूसरोंके प्रश्नके योग्य नहीं होता । उनसे नरकगति अनन्तगुणी हीन है ॥ १०८ ॥ क्योंकि, वह नारक पर्यायको उत्पन्न करानेवाली है । उससे तिर्यग्गति अनन्तगुणी हीन है ।। १०९ ॥ [ ४, २, ७, १०६. क्योंकि, उसमें नरकगतिके समान तेतीस सागरोपम कालतक फल उत्पन्न कराने की शक्ति नहीं है, अथवा यह नरकगति के समान दुखकी कारण नहीं है । उससे स्त्रीवेद अनन्तगुणा हीन है ॥ क्योंकि वह अरतिगर्भित कण्डेकी आगके उससे पुरुषवेद अनन्तगुणा हीन हैं ॥ क्योंकि, वह तृणाग्निके समान थोड़े दुखको उत्पन्न करनेवाला है । १११ ॥ Jain Education International ११० ॥ समान दुःखोत्पादक है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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