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________________ [५७ ४, २, ७, १०५.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं सोगो अणंतगुणहीणो ॥ १०॥ कुदो ? अरदिपुरंगमत्तादो । कधमरदिपुरंगमत्तं ? अरदीए विणा सोगाणुप्पत्तीए । भयमणंतगुणहीणं ॥ १०१ ॥ भयउदयकालादो सोगुदयकालस्स महल्लत्तवलंभादो। सोगो उक्कस्सेण छम्मासमेत्तो चेव, भयस्स कालो णेरइएसु तेत्तीससागरोवममेत्तो ति भयमणंतगुणं किष्ण जायदे ? ण, णेरइएसु वि भयकालस्स अंतोमुहुत्तस्सेव उवलंभादो। दुगुंछा अणंतगुणहीणा ॥ १०२ ॥ पयडिविसेसेण । णिदाणिद्दा अणंतगुणहीणा ॥ १०३ ॥ कस्स वि जीवस्स कहिं मि उदयदंसणादो। पयलापयला अणंतगुणहीणा ॥ १०४ ॥ लालासंदणेण थोवकालपडिबद्धचेयणाभावदसणादो, णिहाणिदाए उदएण तदणुवलंभादो। णिद्दा अणंतगुणहीणा ॥ १०५ ॥ उससे शोक अनन्तगुणा हीन है ॥१०० ।। क्योंकि, वह अरतिपूर्वक होता है। शंका-वह अरतिपूर्वक कैसे होता है ? समाधान--क्योंकि, अरतिके बिना शोक नहीं उत्पन्न होता है। उससे भय अनन्तगुणा हीन है॥ १०१ ॥ क्योंकि, भयके उदयकालकी अपेक्षा शोकका उदयकाल बहुत पाया जाता है। शंका-चूंकि शोक उत्कष्टसे छह मास पर्यन्त ही होता है, परन्तु भयका काल नारकियोंमें तेतीस सागरोपम प्रमाण है, अतएव शोककी अपेक्षा भय अनन्तगुणा क्यों नहीं होता? समाधान नहीं, क्योंकि, नारकियोंमें भी भयका काल अन्तर्मुहूर्त ही उपलब्ध होता है। उससे जुगुप्सा अनन्तगुणी हीन है ।। १०२ ॥ इसका कारण प्रकृतिविशेष है। उससे निद्रानिद्रा अनन्तगुणी हीन है ॥ १३ ॥ क्योंकि, किसी भी जीवके कहीं पर ही उसका उदय देखा जाता है। उससे प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी हीन है ॥ १०४ ॥ क्योंकि, लार बहनेसे थोड़े कालसे सम्बन्ध रखनेवाला चैतन्य भाव देखा जाता है, परन्तु निद्रानिन्द्राके उदयसे उसकी उपलब्धि नहीं होती। उससे निद्रा अनन्तगुणी हीन है ॥ १०५ ॥ छ. १२-८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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