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४, २, ७, १३.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं ___कुदो ? पयडिमाहप्पेण । तं कधं णबदे १ कजथोवबहुत्तदंसणादो। तं जहासंजमासंजमघादयमपञ्चक्खाणावरणीयं पच्चक्खाणावरणीयं पुण संजमघादयं । तेण अपचक्खाणावरणादो पच्चक्खाणावरणमहल्लत्तं णव्वदे।
माया विसेसहीणा ॥१०॥ पयडिविसेसेण । कोधो विसेसहीणो ॥ १ ॥ पडि विसेसेण । माणो विसेसहीणो ॥ १२ ॥ पयडिविसेसेण।
आभिणिबोहियणाणावरणीयं परिभोगंतराइयं च दो वि तुल्लाणि अणंतगुणहीणाणि ॥ ६३ ॥
कुदो ? पयडिविसेसेण । पयडिमाहप्पं कधं णव्वदे ? सव्वघादि-देसघादित्तणेहि । अपचक्खाणावरणचदुकं सव्वधादि, णिस्सेसदेससंजमघादित्तादो । आभिणिबोहियणाणाव
इसमें प्रकृतिका महत्व ही कारण है। शंका--यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान---उसका परिज्ञान कार्यके अल्पबहुत्वको देखनेसे होता है। यथा---अप्रत्याख्यानावरणीय संयमासंयमका घातक है, परन्तु प्रत्याख्यानावरणीय संयमका विघातक है। इससे अप्रत्याख्यानावरणकी अपेक्षा प्रत्याख्यानावरणकी महानता जानी जाती है।
उससे अप्रत्याख्यानावरण माया विशेष हीन है ॥ ९० ॥ इसका कारण प्रकृति विशेष है।। उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध विशेष हीन है ।। ९१ ॥ इसका कारण प्रकृति विशेष है।
उससे अप्रत्याख्यानावरण मान विशेष हीन है ॥ ९२ ॥ • इसका कारण प्रकृति विशेष है।
.. उससे आभिनिवोधिक ज्ञानावरणीय और परिभोगान्तराय दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं ॥ ९३ ॥
क्योंकि ये प्रकृति विशेष हैं। शंका-प्रकृतिका माहात्म्य किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान--उसका परिज्ञान सर्वघाती व देशघाती स्वरूपसे होता है। अपत्याख्यानवरण चतुष्क सर्वघाती है, क्योंकि, वह पूर्णतया देशसंयमका घात करता है। परन्तु आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय और परिभोगान्तराय देशघाती हैं, क्योंकि, ये दोनों क्रमशः मतिज्ञान और
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