________________
४, २, ७, ८५.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं
[५१ कधं संजलणाणुभागो अणंतगुणहीणो ? पयडि विसेसादो । तं जहा-अणंताणुबंधिचउकं सम्मत्त-संजमाणं घादयं, संजलणचदुकं पुण चारित्तस्सेव विणासयं । तदो अणंताणुबंधिचउक्कसत्तीदो संजलणचउक्कसत्तीए अप्पयरत्तं णव्वदे । तेण अणंताणुभागादो संजलणाणुभागस्स अणंतगुणहीणत्तं णव्वदे।
माया विसेसहीणा ॥ ८२ ॥ पयडिविसेसेण । कोधो विसेसहीणो ॥ ८३ ॥ पयडि विसेसेण । माणो विसेसहीणो ॥ ८४ ॥ पयडिविसेसेण । पञ्चक्खाणावरणीयलोभो अणंतगुणहीणो॥ ८५ ॥
कुदो ? पयडिविसेसेण । कधं पयडिविसेसो णव्वदे ? संजलणचउक्कं जहावखादसंजमधादयं पञ्चक्खाणावरणीयं पुण सरागसंजमघादयं । तेण पञ्चक्खाणादो संजलणाणुहोता है तब अनन्तानुबन्धीके अनुभागकी अपेक्षा संज्वलनका अनुभाग अनन्तगुणा हीन कैसे हो सकता है ?
समाधान-प्रकृतिविशेष होनेके कारण वैसा होना सम्भव है । यथा-अनन्तानुबन्धिचतुष्क सम्यक्त्व और संयमका घातक है, परन्तु संज्वलनचतुष्क केवल चारित्रका ही घात करनेवाला है। इसीसे अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी शक्तिकी अपेक्षा संज्वलनचतुष्ककी शक्ति अल्पतर है यह जाना जाता है और इस कारण अनन्तानुबन्धीके अनुभागसे संज्वलनका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है, यह जाना जाता है।
उससे संज्वलन माया विशेषहीन है ॥ ८२ ॥ इसका कारण प्रकृति विशेष है। उससे संज्वलन क्रोध विशेष हीन है ॥ ८३ ॥ कारण प्रकृति विशेष है। उससे संज्वलन मान विशेष हीन है ॥ ८४॥ कारण प्रकृति की विशेषता है। उससे प्रत्याख्यानावरण लोभ अनन्तगुणा हीन है ॥ ८५ ॥ इसका कारण प्रकृतिगत विशेषता है। शंका--यह प्रकृतिगत विशेषता किस प्रमाणसे जानी जाती है ?
समाधान-संज्वलन चतुष्क यथाख्यात संयमका घातक है, परन्तु प्रत्याख्यानावरणीय सरागसंयमका घातक है। इसीसे प्रत्याख्यानावरणकी अपेक्षा संज्वलनका अनुभाग अतिशय महान् है यह जाना जाता है । दूसरे, प्रत्याख्यानावरणका उदय संयतासंयत गुणस्थान तक होता है,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org