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________________ ३४] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [२, ७, २६.४४, एरंडदंडओ'व्व असारत्तादो बहुगं धादिज्जदि, केवलणाण-दसणावरणीयाणि पुण सव्वघादीणि वज्जसेलो व्व णिकाचिदत्तादो बहुगं ण धादिज्जति । तेण अंतराइयजहण्णाणुभागादो णाणदंसणावरणीयजहण्णाणुभागाणमणंतगुणत्तं जुज्जदे । . आउववेदणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥४४॥ मणुसेण वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएण वा परियत्तमाणमझिमपरिणामेण वद्धमपज्जत्ततिरिक्खाउअमणुभागेण जहण्णं । एदं तेहिंतो अणंतगुणं । कुदो ? णाण-दंसणावरणीयअणुभागो व्व खंडयघादेहि अणुसमओवट्टणाघादेहि च खवगसेडीए अपत्ताणुभागधादत्तादो। गोदवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ४५ ॥ बादरतेउ-वाउपज्जत्तएसु सव्वविसुद्धेसु हदसमुप्पत्तियकम्मेसु ओव्वट्टिदउच्चागोदेसु गोदाणुभागो जहण्णो जादो' । एत्थ जदि वि संखेज्जसहस्साणुभागखंडयाणि पदिदाणि तो वि घादिदसेसाणुभागो आउअजहण्णाणुभागादो अणंतगुणो होदि । 'सव्वुक्कस्सतिरि क्खाउअअणुभागादो सव्वुक्कस्सणीचागोदाणुभागो अणंतगुणो'त्ति चउसद्विपदियदंडए न्तराय कर्म देशघाती लक्षणवाला है इसकारण वह एरण्डदण्डके समान निःसार होनेसे बहुत घाता जाता है, किन्तु केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण सर्वघाती हैं अतः वे वनशैलके समान निविडरूपसे बन्धको प्राप्त होनेके कारण बहुत नहीं पाते जाते हैं इसलिये अन्तरायकर्मके जघन्य अनुभागकी अपेक्षा ज्ञानावरण और दर्शनावरणके जघन्य अनुभागका अनन्तगुणा होना उचित ही है। उनसे भावकी अपेक्षा आयुकर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है॥४४॥ मनुष्य अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाले जीवके द्वारा परिवर्तमान मध्यम परिणामोंसे बाँधी गई अपर्याप्त तिर्यंच सम्बन्धी आयु अनुभागकी अपेक्षा जघन्य होती है। यह उपर्युक्त दोनों कर्मों के जघन्य अनुभागसे अनन्तगुणी है, क्योंकि, जिस प्रकार क्षपकणिमें ज्ञानावरण और दर्शनावरणका अनुभाग काण्डकघात व अनुसमयापवर्तनाघातके द्वारा घातको प्राप्त होता है उसप्रकार उनके द्वारा आयुकर्मका अनुभाग घातको नहीं प्राप्त होता। उससे भावकी अपेक्षा गोत्रकर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४५ ॥ जो सर्वविशुद्ध हैं, हतसमुत्पत्तिककर्मा हैं और जिन्होंने उच्च गोत्रका अपवर्तनाघात किया है ऐसे बादर तेजकायिक व वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें गोत्र कर्मका अनुभाग जघन्य होता है। यहाँ यद्यपि संख्यात हजार अनुभागकाण्डकघात हुए हैं तो भी गोत्रकर्मका घात करनेके बाद शेष रहा अनुभाग आयुके जघन्य अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणा है। यतः चतुःषष्ठिपदिक दण्डकमें "सर्वोत्कृष्ट तिर्यगायुके अनुभागसे सर्वोत्कृष्ट नीच गोत्रका अनुभाग अनन्तगुणा है" ऐसा कहा . १ अप्रतौ 'एदंडदंडो' इति पाठः। २ अप्रतौ 'गोदाणभागो जहण्णेज्जादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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