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३२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, ४२. णाम । एसो अणुभागखंडयघादो त्ति किण्ण वुच्चदे ? ण, पारद्धपढमसमयादो अंतोमुहत्तण कालेण जो घादो णिप्पजदि सो अणुभागखंडयघादो णाम, जो पुण उक्कीरणकालेण विणा एगसमएणेव पददि सा अणुसमओवट्टणा । अण्णं च, अणुसमोवट्टणाए णियमेण अणंता भागा हम्मंति, अणुभागखंडयघादे पुण पत्थि एसो णियमो, छव्विहहाणीए खंडयघादुवलंभादो।
अंतराइयवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ४२ ॥
खोणकसायकालभंतरे जदि वि अंतराइयअणुभागो अणुसमयओवट्टणाए घादं पत्तो तो वि एसो अणंतगुणो, सुहम-बादरकिट्टीहिंतो अणंतगुणफद्द यसरूवत्तादो। अणुभागखंडयघादेहि अणुसमओवट्टणाघादेहि च दोण्णं कम्माणं सरिसत्ते संते किमट्ट घादिदसेसाणभागाणं विसरिसत्तं ? ण एस दोसो, संसारावत्थाए सव्वत्थ लोभसंजलणाणुभागादो वीरियंतराइयाणुभागस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो। थोवाणुभागपयडीए धादिदसेसाणुभागो थोवो होदि, महल्लाणुभागपयडीए घादिदसेसाणुभागो बहुओ चेव होदि ।
शंका--इसे अनुभागकाण्डकघात क्यों नहीं कहते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, प्रारम्भ किये गये प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा जो घात निष्पन्न होता है वह अनुभागकाण्डकघात है, परन्तु उत्कीरणकालके बिना एक समय द्वारा ही जो घात होता है वह अनुसमयापवर्तना है। दूसरे, अनुसमयापवर्तनामें नियमसे अनन्त बहुभाग नष्ट होता है, परन्तु अनुभागकाण्डकघातमें यह नियम नहीं है, क्योंकि, छह प्रकारकी हानि द्वारा काण्डकघातकी उपलब्धि होती है।
विशेषार्थ--यहाँ अनुभाग काण्डकघात और अनुसमयापवर्तना इन दोनोंमें क्या अन्तर है इसपर प्रकाश डाला गया है। काण्डक पोरको कहते हैं। कुल अनुभागके हिस्से करके एक एक हिस्सेका फालिक्रमसे अन्तर्मुहूर्तकाल द्वारा अभाव करना अनुभाग काण्डकघात कहलाता है और प्रति समय कुल अनुभागके अनन्त बहुभागका अभाव करना अनुसमयापवर्तना कहलाती है। मुख्यरूपसे यही इन दोनोंमें अन्तर है।
उससे भावकी अपेक्षा अन्तरायकर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४२ ॥
क्षीणकषायके कालके भीतर यद्यपि अन्तराय कर्मका अनुभाग अनुसमयापवर्तनाके द्वारा घातको प्राप्त हुआ है तो भी यह मोहनीयके जघन्य अनुभागसे अनन्तगुणा है, क्योंकि वह मोहनीयकी सूक्ष्म और बादर कृष्टियोंकी अपेक्षा अनन्तगुणे स्पर्धकरूप है।
शंका--अनभागकाण्डकघात और अनसमयापवर्तनाघातके द्वारा दोनों कर्मों में समानताके होनेपर घात करनेके बाद शेष रहे अनुभागोंमें विसदृशता क्यों पाई जाती है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, संसार अवस्थामें सर्वत्र संज्वलन लोभके अनुभागकी अपेक्षा वीर्यान्तरायका अनुभाग अनन्तगुणा उपलब्ध होता है। स्तोक अनुभागवाली प्रकृतिका घात करनेके बाद शेष रहा अनुभाग स्तोक होता है और महान् अनुभागवाली प्रकृतिका
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