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________________ २८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, ३३. वुचंति । तत्थतणजहण्णपरिणामेहि तप्पाओग्गविसेसपञ्चएहि जमपज्जत्ततिरिक्खाउअं बद्धबयं तस्स जहण्णाणुभागो होदि । जस्स तं संतकम्मं तस्स वि । तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥ ३३॥ सुगमं । सामित्तण जहण्णपदे णामवेयणा भावदो जहणिया कस्स ? ॥ ३४ ॥ । सुगमं । अण्णदरेण सुहमणिगोदजीवअपजुत्तएण हदसमुप्पत्तियकम्मेण परियत्तमाणमज्झिमपरिणामेण बद्धल्लयं जस्स तं संतकम्ममत्थि तस्स णामवेयणा भावदो जहण्णा ॥ ३५ ॥ ओगाहणादिविसेसाभावपदुप्पायणहं 'अण्णदरेण' इत्ति वुत्तं । बादरेइंदियअपज्जत्तादिउवरिमजीवसमासपडिसेहढं 'सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्तएण' इत्ति भणिदं। उवरिमजीवसमासपडिसेहो किम कीरदे ? तत्थ जहण्णाणभागासंभवादो। तं जहा–ण ताव तत्थ अवस्थित परिणाम परिवर्तमान मध्यम परिणाम कहलाते हैं। उनमें जघन्य परिणामोंसे तत्प्रायोग्य विशेष कारणों द्वारा जिसने अपर्याप्त सम्बन्धी तिर्यच आयुको बाँधा है उसके आयुका जघन्य अनुभाग होता है, तथा जिसके उक्त अनुभागका सत्त्व होता है उसके भी आयुका जघन्य अनुभाग होता है इससे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ ३३ ॥ यह सूत्र सुगम है। स्वामित्वसे जघन्य पदमें नामकर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ ३४ ॥ यह सूत्र सुगम है, हतसमुत्पत्तिक कर्मवाला अन्यतर जो सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामोंके द्वारा नाम कर्मका बन्ध करता है उसके और जिसके इसका सत्त्व होता है उसके नाम कर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ ३५ ॥ अवगाहना आदिसे होनेवाली विशेषता यहाँ विवक्षित नहीं है यह बतलानेके लिये 'अन्यतर' पद कहा है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त आदि आगेके जीवसमासोंका प्रतिषेध करनेके लिये 'सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीवके द्वारा' ऐसा कहा है। शंका-आगेके जीवसमासोंका प्रतिषेध किसलिये करते हैं। समाधान - चूंकि उनमें जघन्य अनुभागकी सम्भावना नहीं है, अतः उनका प्रतिषेध करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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