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४, २, ७, २६.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे सामित्तं
[२३ अणुसमयमणंतगुणहीणं होदूण खीणकसायचरिमसमयपत्ताणुभागादो तस्सेव पढमसमयअणुभागस्स अणंतगुणदंसणादो ।
तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥२३॥ • सुगममेदं।
एवं दंसणावरणीय-अंतराइयाणं ॥ २४ ॥
घादिकम्मत्तणेण अणुसमओवट्टणाए घादं पाविदूण खीणकसायचरिमसमए विणद्वत्तणेण भेदाभावादो।
सामित्तण जहण्णपदे वेयणीयवेयणा भावदो जहणिया कस्स ? ॥ २५ ॥
सुगमं ।
अण्णदरखवगस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स असादावेदणीयस्स वेदयमाणस्स तस्स वेयणीयवेयणा भावदो जहण्णा ॥ २६ ॥
ओगाहणादीहि विसेसाभावपदुप्पायणफलो 'अण्णदग्स्स' इत्ति णिद्देसो। अक्खवगपडिसेहफलो'खवगणिदेमो । दुचरिमभवसिद्धियादिपडिसेहफलो 'चरिमसमयभवसिद्धियस्स' समय अनन्त गुणाहीन होकर क्षीणकषायके अन्तिम समयको प्राप्त हुए अनुभागकी अपेक्षा उसी गुणस्थानके प्रथम समयका अनुभाग अनन्तगुणा देखा जाता है।
उससे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ २३ ॥ यह सूत्र सुगम है।
इसी प्रकार दर्शनावरणीय और अन्तरायकी जघन्य और अजघन्य वेदना का कथन करना चाहिये ॥ २४ ॥
कारण कि एक तो ये दोनों घातिकर्म होनेसे ज्ञानावरण की अपेक्षा इनमें कोई विशेषता नहीं है दूसरे प्रत्येक समयमें होनेवाले अपवर्तनाघात के द्वारा घात होकर क्षीणकषायके अन्तिम समयमें विनष्ट हुए अनुभागकी अपेक्षा ज्ञानावरणसे इनमें कोई विशेषता नहीं है ।
स्वामित्वसे जघन्य पदमें वेदनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ २५ ॥
यह सूत्र सुगम है।
असातावेदनीयका वेदन करनेवाले अन्तिम समयवर्ती भवसिद्धिक अन्यतर क्षपकके वेदनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ २६ ॥
अवगाहना आदिसे होनेवाली विशेषता यहाँ विवक्षित नहीं यह बतलानेके लिये सूत्रमें 'अन्यतर' पदका निर्देश किया है। क्षपकके निर्देशका फल अक्षपकका प्रतिषेध करना है । अन्तिम समयवर्ती भवसिद्धिक कहनेका प्रयोजन द्विचरम समयवर्ती आदि भवसिद्धिकोंका प्रतिषेध करना है।
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