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________________ २२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, २१. सामित्तेण जहण्णपदे णाणावरणीयवेयणा भावदो जहण्णिया कस्स ? ॥ २१ ॥ सुगममेदं । अण्णदरस्स खवगस्स चरिमसमयछदुमत्थस्स णाणावरणीयवेयणा भावदो जहण्णा ॥ २२ ॥ ओगाहणादिविसेसेहि भेदाभावपदुप्पायणटुं'अण्णदरस्स' इत्ति भणिदं । अक्खवगपडिसेहफलो'खवग'णिदेसो।खीणकसायदुचरिमसमयप्पहुडिहेट्ठिमखवगपडिसेहफलो 'चरिमसमयछदुमत्थस्स' इत्ति णिद्देसो। चरिमसमयसुहुमसापराइयजहण्णाणुभागबंधं घेत्तूण जहण्णसामि तत्थ किण्ण परूविदं ? ण, जहण्णाणुभागबंधादो तत्थतणसंताणभागस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो। खीणकसायचरिमसमए वि चिराणाणभागसंतकम्मं चेव घेत्तण जेण जहण्णं दिण्णं तेण खीणकसायपढमसमए जहण्णसामित्तं दिज्जदु, चिराणाणुभागसंतकम्मत्तं पडि भेदाभावादो ति? ण एस दोसो, अणुसमओवट्टणाघादेण स्वामित्वसे जघन्य पदमें ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ २१ ॥ यह सूत्र सुगम है। अन्यतर क्षपक अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ २२ ॥ अवगाहनादिक विशेषोंसे उत्पन्न विशेषताकी अविवक्षा बतलाने के लिये 'अन्यतर' पदका निर्देश किया है। क्षपक पदके निर्देशका प्रयोजन अक्षपकोंका प्रतिषेध करना है। क्षीणकषाय गुणस्थानके द्विचरम समयवर्ती आदि अधस्तन क्षपकोंका निषेध करने के लिये 'अन्तिम समयवर्ती छन्मस्थके' ऐसा निर्देश किया है। शङ्का अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके जघन्य अनुभागबन्धको ग्रहणकर वहाँ जघन्य स्वामित्व क्यों नहीं बतलाया ? समाधान नहीं, क्योंकि, जघन्य अनुभाग बन्धकी अपेक्षा वहाँ अनुभागका सत्त्व अनन्तगुणा पाया जाता है। शङ्का-क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समयमें भी चूँकि चिरन्तन अनुभागके सत्त्वको लेकर ही जघन्य स्वामित्व दिया गया है अतएव क्षीणकषायके प्रथम समयमें भी जघन्य स्वामित्व दिया जाना चाहिये था, क्योंकि, चिरन्तन अनुभागके सत्त्वकी अपेक्षा दोनों में कोई भेद नहीं है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है,क्योंकि, प्रत्येक समयमें होनेवाले अपवर्तनाघातके द्वारा प्रति १ अप्रतौ 'अोगाहणणादिविसेसोहि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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