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________________ २, ४, १३, २४९.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं [४५५ जस्स णाणावरणीयवेयणा भावदो उकस्सा तस्स दंसणावरणीयमोहणीय-अंतराइयवेयणा भावदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥२४६ ॥ सुगमं । उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा, उक्कस्सादो अणुक्कस्सा छट्ठाणपदिदा ॥ २४७॥ णाणावरणीयभावमुक्कस्सं बंधमाणेण जदि सेसघादिकम्माणमुक्कस्समावो पबद्धो तो उकस्सा भाववेयणा होदि । अह ण' बद्धो अणुकस्सा होर्ण अणंतभागहीण-असंखेज्जभागहीण-संखेज्जमागहीण-संखेज्जगुणहीण-असंखेज्जगुणहीण-अणंतगुणहीणसरूवेण छट्ठाणपदिदा होदि । कधमेकेण परिणामेण बज्झमाणाणं भावाणं भेयो ? ण, विसेसपञ्चयभेएण तेसि पि भेदुप्पत्तीदो। तस्स वेयणीय-आउव-णामा-गोदवेयणा भावदो किमुक्कस्सा अणकस्सा ॥२४८॥ सुगर्म । णियमा अणुकस्सा अणंतगुणहीणा ॥ २४६ ॥ जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ २४६॥ यह सूत्र सुगम है। वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उत्कृष्टसे अनुत्कृष्ट छह स्थानों में पतित है ॥ २४७॥ ज्ञानावरणीयके उत्कृष्ट भावको बाँधनेवाले जीवके द्वारा यदि शेष घातिकर्मोंका उत्कृष्ट भाव बाँधा गया है तो उनकी उत्कृष्ट भाववेदना होती है। परन्तु यदि उनका उत्कृष्ट भाव नहीं बाँधा गया । वह अनुत्कृष्ट होकर अनन्तभागहीन, असंख्यातभागहीन, संख्यातभागहीन, संख्यातगुणहीन, असंख्यातगुणहीन और अनन्तगुणहीन स्वरूपसे छह स्थानोंमें पतित होती है। शङ्का-एक परिणामसे बाँधे जानेवाले भावों के भेदकी सम्भावना कैसे हो सकती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, विशेष प्रत्ययोंके भेदसे उनके भी भेदकी उत्पत्ति सम्भव है। उसके वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकी वेदना भावकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ २४८ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणी हीन होती है ।। २४६ ॥ १ अ-श्रा-काप्रतिषु 'जहण्ण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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