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________________ ४१०] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १३, ८५. तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥ ८५ ॥ सुगमं । णियमा अणुक्कस्सा असंखेज्जगुणहीणा ॥८६॥ कुदो ? अद्धहरयणिमादि कादण जाव पंचधणुस्सद-पणवीसुत्तरदीहत्तवलक्खियाणं उक्कस्सकालसामित्तम्हि संभवंतक्खेत्ताणं घणलोगस्स असंखेज्जदिमागत्तवलंभादो । अद्धट्ठमरज्जूणं मुक्कमारणंतियमहामच्छखेतं कालसामिस्स उक्कस्समिदि किण्ण घेपदे ? ण एस दोसो, अबद्धाउआण बज्झमाणाउआणं च जीवाणं मारणंतियाभावादो । तस्स भावदो किमुक्कसा अणुक्कस्सा ॥८७॥ सुगमं । णियमा अणुक्कस्सा अणंतगुणहीणा ॥ ८८ ॥ कुदो ? आउअस्स उक्कस्सकालवेयणा आउअबंधपढमसमए वट्टमाणपमत्तसंजदम्मि होदि । उक्कस्सभाववेयणा पुण आउअबंधगद्धाए चरिमसमए वट्टमाणस्स अप्पमत्तसंजदम्मि पमत्त विसोहीदो अणंतगणविसोहिपरिणामस्स' होदि। तेण कारणेण उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ८५॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणीहीन होती है ॥ ८६ ॥ कारण कि साढ़े तीन रत्निसे लेकर पाँच सौ पच्चीस धनुष प्रमाण दीर्घतासे उपलक्षित जिन क्षेत्रोंकी उत्कृष्ट काल स्वामित्वमें सम्भावना है वे घनलोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण पाये जाते हैं। शंका-साढ़े सात राजु मारणान्तिक समुद्घातको करनेवाले महामत्स्यका क्षेत्र काल स्वामीका उत्कृष्ट क्षेत्र है, ऐसा ग्रहण क्यों नहीं करते ? _ समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अबद्धायुष्क और वर्तमानमें आयुको बांधनेवाले जीवोंके मारणान्तिक समुद्घात नहीं होता। उसके भावकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ८७ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणी हीन होती है ॥ ८८ ॥ कारण यह कि आयुकी उत्कृष्ट कालवेदना आयुबन्धके प्रथम समयमें वर्तमान प्रमत्तसंयत जीवके होती है। परन्तु उसकी उत्कृष्ट भाववेदना आयुबन्धक कालके अन्तिम समयमें वर्तमान व प्र संयतकी विशुद्धिसे अनन्तगुणे विशुद्धिपरिणामवाले अप्रमत्तसंयत जीवके होती है। इसी कारणसे १ अाप्रतौ -विसोहीए परिणामस्स' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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