SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४, २,७, ४. वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे पदमीमांसा सामण्णस्स विणासाभावादो । सिया अधुवा, तव्विसेसं पडुच्च विणासदंसणादो । सिया जुम्मा सिया ओमा सिया विसिट्ठा सिया णोम-णोविसिट्ठा । एवमणादियपदमेकारसवियप्पं होदि ११ । __ संपहि अट्ठमपुच्छासु पडुच्च अत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा-धुवणाणावरणीयभाववेयणा सिया उक्कस्सा सिया अणुक्कस्सा सिया जहण्णा सिया अजहपणा सिया सादिया सिया अणादिया सिया अधुवा सिया जुम्मा सिया ओमा सिया विसिट्ठा सिया णोम-णोविसिट्ठा । एवं धुवपदमेकारसविहं होदि ११ । संपहि णवमपुच्छासुचं पडुच्च अत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा-अधुवणाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा सिया अणक्कस्सा सिया जहण्णा सिया अजहण्णा सिया सादिया सिया अणादिया, णाणाजीवेसु अणादियसरूवेण अर्धवत्तदंसणादो । सिया धुवा, विसेसाभावेण अधुवस्स अणभागस्स सामण्णभावेण धुवत्तदंसणादो। सिया जुम्मा सिया अोमा सिया विसिट्ठा सिया णोम-णोविसिट्ठा। एवमधुवपदमेकारसवियप्पं होदि ११ । दसमपुच्छासु पडुच्च अत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा–जुम्मणाणावरणीयभाववेयणा सिया उक्कस्सा [सिया अणुक्कस्सा ] सिया जहण्णा सिया अजहण्णा सिया जाती है। कथञ्चित् प्र व है, क्योंकि, अनुभागसामान्धका कभी विनाश नहीं होता। कथञ्चित् अध्रव है, क्योंकि, अनुभागविशेषकी अपेक्षा उसका विनाश देखा जाता है। कथञ्चित युग्म है, कथश्चित् ओम है, कथञ्चित् विशिष्ट है व कथञ्चित् नोम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार अनादि पद ग्यारह (११) भेद रूप है। अब आठवें पृच्छासूत्रका आश्रय करके अर्थप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- ध्रुवझानावरणीयभाववेदना कश्चित् उत्कृष्ट है, कथञ्चित् अनुत्कृष्ट है, कथञ्चित् जघन्य है, कथञ्चित् है. कथश्चित् सादि है, कथञ्चित् अनादि है, कथञ्चित् अध्रव है, कथश्चित् युग्म है, कथञ्चित् ओम है, कश्चित् विशिष्ट है व कथञ्चित् नोम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार ध्रुव पद ग्यारह (११) प्रकारका है। अब नौवें पृच्छासत्रका आश्रय कर अर्थप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-अध्र व ज्ञानावरणीयवेदना कथञ्चित् उत्कृष्ट है, कथञ्चित् अनुत्कृष्ट है, कथञ्चित् जघन्य है, कथञ्चित् अजघन्य है व कथञ्चित् सादि है । कथश्चित् अनादि है, क्योंकि, नाना जीवोंमें अनादि स्वरूपसे अध्र वता पायी जाती है। कथश्चित् ध्रुव है, क्योंकि, विशेषकी विवक्षा न होनेसे अध्रुव अनुभागकी सामान्य रूपसे ध्रुवता देखी जाती है । कथश्चित् युग्म है, कश्चित् ओम है, कथञ्चित् विशिष्ट है और कथञ्चित् नोम-नोविशिष्ट है । इस प्रकार अध्रुव पद ग्यारह (११) विकल्प रूप है। - दसवें पृच्छासूत्रका आश्रय कर अर्थप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-युग्म ज्ञानावरणीयभाववेदना कथञ्चित् उत्कृष्ट है, [ कथश्चित् अनुत्कृष्ट है,] कथञ्चित् जघन्य है, कथश्चित. छ. १२-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy