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________________ ४, २, १०, ५४.] वेयणमहाहियारे वेयणवयणविहाणं [ ३६१ एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया उदिण्णा च उवसंता च वेयणा । एवमेया उच्चारणा [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तेसिं चेव जीवाणमया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया उदिण्णा च उवसंता च वेयणा । एवमेत्थ बे चेव उच्चारणाओ [२] । संपहि तिसंजोगजणिदवेयण वेयणविहाणपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि सिया बज्झमाणिया च गदण्णा च उवसंता च ॥ ५४॥ एदस्स अत्थे भण्णमाणे तिसंजोगसुत्तपत्थारं || तेसिं चेव [ जीव-] पयडि. समयपत्थारे च ठविय | १२|१२|१२| ११ | ११ | ११ | अत्या । अत्थो वुच्चदे । तं जहा–एयस्स जीवस्स |११| ११|११| एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झभी स्थापित करके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार एक उच्चारणा हुई (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार यहाँ दो ही उच्चारणायें हैं (२)। अब तीनोंके संयोगसे उत्पन्न वेदनाके विधानकी प्ररूपणा करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ ५४॥ इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय तीनोंके संयोग रूप सूत्रके प्रस्तार उ० १ को तथा | वध्यमान | उदीर्ण । उपशान्त | उन्हींसे सम्बद्ध [जीव,] प्रकृति और समयके प्रस्तार: प्रकृति एक |एक | एक |एक एक |एक समय | एक | एक | एक एक | एक | एक को भी स्थापित करके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है। छ. १२-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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