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________________ ३६० ] छक्खंडांगमे वेयणाखंड : . [४, २, १०, ५३. marti - प्रविय | १२ | १२ | पच्छा सत्तालावो वच्चदे । |११|११ तं जहा–एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया वज्झमाणिया च उवसंता च वेयणा । एवमेगा उच्चारणा [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उपसंता. सिया बज्ममाणिया च उवसंता च वेयणा । एवमेदस्स सुत्तस्स दो चेव उच्चारणाओ [२] । ... सिया उदिण्णा च उवसंता च ॥ ५३॥ एत्थ पुव्वं व उदिष्णुवसंतदुसंजोगपत्यारं | १ | तेसिं चेव जीव-पयडि-समय १९ अत्थो वुच्चदे । तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी ११/११ ११ | ११ पत्थारं च ठविय | १२|१२| बध्यमान | उपशान्त एक अनेक एक अनेक प्रकृति एक | एक | एक एक समय| एक एक एक | एक करके पश्चात् सूत्रके आलापको कहते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार एक उच्चारणा हुई (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार इस सूत्रकी दो ही उच्चारणायें हैं (२)। कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ ५३ ॥ यहाँ पहिलेके समान उदीर्ण और उपशान्त, इन दोके संयोग रूप प्रस्तार |१|को तथा उन्हींसे उप०/१ उ० उदीण उपशान्त जीव एक अनेक एक अनेक सम्बन्ध रखनेवाले जीव, प्रकृति और समय, इनके प्रस्तार प्रकृति एक | एक एक एक को समय| एक एक एक एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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