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________________ २४६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १०, ३३. (एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणाए कीरमाणाए जीव-पयडि-समयाणमेगवयणं जीवसमयाणं बहुवयणं च ठविय ३१३ अक्खपरावत्ते कदे उवसंतवेषणाए जीव-पयडि-समयपत्थारो होदि१२ (संपहि ऐदस्स सुत्तस्स भंगुच्चारणं कस्सामो । तं जहाएयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उवसंता वेयणा । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उवसंता वेयणा । एवमेदस्स वि सुत्तस्स बे चेव भंगा [२] | एवं वज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणमेयवयणपरूवणा कदा।) सिया उदिण्णाओ वेयणाओ॥३३॥ बज्झमाणियाए वेयणाए किण्ण बहुत्तं परूविदं १ ण, ववहारणयम्मि तिस्से बहुत्ताभावादो । ण ताव जीवबहुत्तेण बज्झमाणियाए बहुत्तं, जीवभेदेण तिस्से भेदववहाराणु इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय जीव, प्रकृति व समय, इनके एकवचन तथा जीव व जीव प्रकृति समय समयके बहुवचनको स्थापित | एक | एक | एक | कर अक्षपरावर्तन करनेपर उपशान्त वेदना अनेक . अनेक जीव | एक एक अनेक अनेक सम्बन्धी जीव, प्रकृति व समयका प्रस्तार होता है-प्रकृति एक एक एक | एक || अब इस समय एक अनेक एक अनेक सूत्रके भंगोंका उच्चारण करते हैं। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बांधी गई कथंचित् उपशान्त वेदना है। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उपशान्त वेदना है। इस प्रकार इस सूत्रके भी दो ही भंग है (२)। इस प्रकार बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाके एकवचनकी प्ररूपणा की गई है। कथंचित् उदीर्ण वेदनायें हैं ॥ ३३ ॥ शंका-बध्यमान वेदनाके बहुत्वकी प्ररूपणा क्यों नहीं की गई है ? समाधान नहीं क्योंकि. व्यवहारनयकी अपेक्षा उसके बहत्वकी सम्भावना नहीं है। कारण कि जीवोंके बहुत्वसे तो बध्यमान वेदनाके बहुत्वकी सम्मावना है नहीं, क्योंकि, जीवोंके भेदसे उसके भेदका व्यवहार नहीं पाया जाता। प्रकृतिभेदसे भी उसका भेद सम्भव नहीं है, क्योंकि, एक ज्ञाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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