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________________ ११२२। । १२१२ ४, २, १०, ३२.] येयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं [३४५ (सिया उदिण्णा वेयणा ॥३१॥ संपहि एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे जीव-पयडि-समयाणमेगवयणं जीव-समयाणं बहुवयणं च ठविय ३४३] एस्थ अक्खपरावते कदे उदिण्णवेयणाए जीव-पर्याडसमयाणं पत्थारो उप्पज्जदि)।११।। एत्थ उदिण्णाए णस्थि पयडिबहुवयणं, एक्किस्से णाणावरणीयपयडीए बहुत्ताभावादो। जीवाहवयणमत्थि । ण तत्तो उदिण्णबहुत्तं, समयबहुत्तादो चेव उदिण्णाए बहुत्तववहारुवलंभादो। ण च लोगववहारवाहिरं किं पि अस्थि, अव्यवहारणिज्जस्स अस्थित्तविरोहादो। संपहि एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा–एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उदिण्णा वेयणा । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उदिण्णा वेयणा । एवमुदिण्णएगवयणसुत्तस्स बे भंगा [२] । (सिया उवसंता वेयणा ॥ ३२॥) कथंचित उदीर्ण वेदना है ॥ ३१ ॥ अब इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय जीव, प्रकृति और समय, इनके एकवचन तथा |जीव प्रकृति समय जीव व समयके बहुवचनको भीस्थापित करके एक एक एक | यहाँ अक्षपरावर्तन करनेपर उदीर्ण अनेक • अनेक | जीव एक एक अनेक अनेक वेदना सम्बन्धी जीव, प्रकृति व समयका प्रस्तार उत्पन्न होता है- प्रकृति एक एक | एक एक समय एक अनेक एक अनेक यहाँ उदीर्ण वेदनामें प्रकृतिका बहुवचन सम्भव नहीं है, क्योंकि, एक ज्ञानावरणीय प्रकृतिका बहुत होना असम्भव है । जीवबहुवचन सम्भव है। परन्तु उससे उदीर्ण प्रकृतिका बहुत्व सम्भव नहीं है, क्योंकि, समयबहुत्वसे ही उदीर्ण प्रकृतिके बहुत्वका व्यवहार पाया जाता है। और लोकव्यवहारके बाहिर कुछ भी नहीं है, क्योंकि, अव्यवहरणीय पदार्थके अस्तित्वका विरोध है। अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-एक जीषकी एक प्रकृत्ति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार उदीर्ण वेदना सम्बन्धी एकवचन सूत्रके दो भंग होते हैं (२)। कथंचित् उपशान्त वेदना है॥ ३२ ॥ .. छ, १२-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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