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________________ २,'४, ७, २३५.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [२०५ ___ उवरि तिसमझ्याणि बिसमइयाणि अणुभागबंधझवसाणहाणाणि असंखेज्जा लोगा ॥ २३५ ॥ उवरिमचदुसमइएहिंतो उवरिमाणि तिसमइयाणि विसमइयाणि च अणुभागबंधट्ठाणाणि असंखेजलोगमेत्ताणि होति त्ति घेत्तव्यं । एत्थतण उबरिसदो हेहा सिंघावलोअण-' कमेण उवरिं णदीसोदक्कमेण अणुवट्टावेदव्वो, अण्णहा तदत्थपडिवत्तीए अभावादो । एवं पमाणपरूवणा समत्ता। एत्थ अप्पाबहुअं॥२३६॥ कादव्वमिदि अज्झाहारेयव्वं । किमट्ठमप्पाबहुअं कीरदे ? ण एस दोसो, अप्पाबहुए अणवगए अवगयपमाणस्स अणवगयसमाणत्तप्पसंगादो। सव्वत्थोवाणि अट्ठसमइयाणि अणुभागबंधझवसाणहाणाणि ॥२३७॥ केहितो थोवाणि ? उवरि भण्णमाणहाणेहिंतो । कुदो ? साभावियादो। दोसु वि पासेसु सत्तसमइयाणि अणुभागबंधज्झवसाणहाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेजगुणाणि ॥ २३८ ॥ आगे तीन समय योग्य और दो समय योग्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ २३५ ॥ उपरिम चार समय योग्य अनुभागबन्धस्थानोंसे ऊपरके तीन समय योग्य और दो समय योग्य अनुभागबन्धस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । यहाँ सूत्र में प्रयुक्त 'उवरि' शब्दकी अनुवृन्ति पीछे सिंहावलोकनके क्रमसे और आगे नदीस्रोतके क्रमसे कर लेनी चाहिये, क्योंकि, इसके विना अर्थकी प्रतिपत्ति नहीं बनती है। इस प्रकार प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। यहाँ अल्पबहुत्व करने योग्य है ।। २३६ ॥ सूत्रमें 'कादव्वं' अर्थात् करने योग्य है, इस पदका अध्याहार करना चाहिये । शंका- अल्पबहुत्व किसलिये किया जा रहा है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अल्पबहुत्वके ज्ञात न होने पर जाने हुए प्रमाणके भी अज्ञात रहनेके समान प्रसंग आता है । आठ समय योग्य अनुभागवन्धाध्यवसानस्थान सबसे स्तोक हैं ॥ २३७॥ किनसे वे स्तोक हैं ? वे आगे कहे जानेवाले स्थानोंसे स्तोक हैं, क्योंकि ऐसा, स्वभावसे है। दोनों ही पावभागोंमें सात समय योग्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान दोनों ही तुल्य होकर पूर्वोक्त स्थानोंसे असंख्यातगुणे हैं ॥ २३८ ॥ १ अ-आप्रत्योः 'संघावलोच' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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