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________________ २०६ ] खंडागमे वेणाखंड [ ४, २, ७, २४०. को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा । कुदो एदं णव्वदे ? परमगुरूवदेसादो । एसो अविभागपलिच्छेदाणं गुणगारो ण होदि, किं तु द्वाणसंखाए । अविभागपडिच्छेदस्स गुणगारो किण्ण होदि ? ण, अनंतगुणहीणप्पसंग दो' । तं पि कुदो णव्वदे ? अंगुलस्स असंखेजदिभागमेत्तअणुभागबंधट्ठाणेसु अदिकतेसु असंखेजसव्वजीवरा सिमेत्तगुणगारुवलंभादो । एवं समइयाणि पंचसमइयाणि चदुसमइयाणि ॥ २३६ ॥ एवमिदि णिसो मिट्ठ कदो १ दोसु वि पासेसु ट्ठिदछ - पंच-चदुसमइयअणुभागाणा गहण तत्तुल्लत्तपदुप्पायण असंखेजलोगगुणगारजाणावणङ्कं च । उवरि तिसमइयाणि ॥ २४० ॥ तिसमइयाणि अणुभागबंध ज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । एत्थ गुणगारो असंखेजा लोगा । एदस्स सुत्तस्स असंपुण्णत्तं किमिदि ण पसजदे ? ण, उवरिमसुत्तस्स गुणकार क्या है ? गुणकार असंख्यात लोक है । यह कहाँ से जाना जाता है ? वह परम गुरुके उपदेश से जाना जाता है । यह अविभागप्रतिच्छेदों का गुणाकार नहीं है, किन्तु स्थानसंख्याका गुणकार है । शंका- यह अविभागप्रतिच्छेदका गुणकार क्यों नहीं है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, वैसा होनेपर उसके अनन्तगुणे हीन होनेका प्रसंग भाता है । शंका - वह भी कहाँ से जाना जाता है ? समाधान -कारण यह कि अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अनुभागबन्धस्थानोंके अतिक्रान्त होनेपर असंख्यात सब जीवराशि प्रमाण गुणकार पाया जाता है । इसीप्रकार छह समय योग्य, पाँच समय योग्य और चार समय योग्य स्थानोंका अल्पबहुत्व समझना चाहिये || २३६ ॥ शंका- सूत्र में ' एवं ' पदका निर्देश किसलिये किया गया है ? समाधान- दोनों ही पार्श्वभागों में स्थित छ, पाँच और चार समय योग्य अनुभागस्थानोंका ग्रहण करने के लिए, उनकी समानता बतलानेके लिये, तथा असंख्यात लोक गुणकार बतलाने के लिये उक्त पदका निर्देश किया गया है । आगेके तीन समय योग्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान उनसे असंख्यात - गुणे हैं ॥ २४० ॥ तीन समय योग्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । यहाँ गुणकार असंख्यात लोक हैं । शंका- इस सूत्र के अपूर्ण होनेका प्रसंग क्यों नहीं आता है ? १ प्रतौ 'ण, अनंतगुणप्पसंगादो', ताप्रतौ 'ण, अनंतगुणा ( १ ) श्रणंतगुणहीणत्तपसंगादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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