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________________ ४, २, ७, २१४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१७५ खंडाणि कादूण एगखंडस्स सीसे सेसखंडेसु संधिदेसु छप्पण्णखंडायामं एगखंडस्स बारहोत्तरसदभागविक्खंभखेत्तं होदि । एत्थ विक्खंभमेत्ता चेव सगलपक्खेवा उप्पजंति । पुणो सेसपिसुलापिसुलाणि वि सगलपक्खेवो कादूण पुग्विलेहि सह दुगुणवड्डिम्हि पक्खित्ते जहण्णहाणादो सादिरेयदुगुणमेत्तं होदि । संपहि जहण्णहाणं पेखिदूण तिगुणवड्डिहाणं दुगुणवड्डिहाणादो उवरि इगिदालदुभागमत्तखंडाणि तिहि खंडेहि अहियाणि गंतूण होदि । तं जहाइगिदालदुभागस्सुवरि तिसु खांडेसु पक्खियेसु साद्धतेवीसखंडाणि होति । दुगुणवड्डीए उवरि एत्तियमेत्तमद्धाणं गंतूण हिदहाणम्मि सगलप- (२३ | क्खेवा चडिदद्धाणमेत्ता होति । एदे पक्खेवा दुगुणवडिअद्धाणपक्खेवेहिंतो दुगुणा, उकस्ससंखेज्जेण दोसु जहण्णहाणेसु अक्कमेण खंडिज्जमाणेसु दोसगलपक्खेवुप्पत्तीदो। तेण एदेसु पक्खेवेसु दुगुणिदेसु एत्थ पुव्विल्लपक्खेवा सत्तेतालीसखंडमेत्ता होति । एदेहि पक्खेवेहि जहण्णहाणं ण उप्पज्जदि, अण्णेसिं णवणं खंडाणमभावादो। __ संपहि तेसिमुप्पत्तिविहाणं उच्चदे। तं जहा-साद्धतेवीसखंडगच्छस्स एगादिए. गुत्तरसंकलणतिकोणखेचं ठविय समकरणे कदे एगखंडतिण्णिचदुब्भागेण समहियएकारसखंडविक्खंभं | ११ | साद्धतेवीसखंडायाम खेतं । २३ | होदूण चेहदि । स्थापित क्षेत्रके विष्कम्भकी ओरसे छप्पन खण्ड करके एक खडके शिरपर शेष खंडोंके स्थापित करनेपर छप्पन खण्ड आयाम और एक खण्डके एक सौ बारहवें भाग विष्कम्भ युक्त क्षेत्र होता है। यहाँ विष्कम्भके बराबर ही सकल प्रक्षेप उत्पन्न होते हैं। फिर शेष पिशुलापिशुलोंको भी सकल प्रक्षेप करके पूर्व पिशुलापिशुलोंके साथ दुगुणी वृद्धि में मिलानेपर जघन्य स्थानकी अपेक्षा साधिक दुगुण मात्र होता है। अब जघन्य स्थानकी अपेक्षा तिगुणी वृद्धिका स्थान दुगुणवृद्धिस्थानसे आगे इकतालीसके द्वितीय भाग मात्र खण्ड तीन खण्डोंसे अधिक जाकर होता है। वह इस प्रकारसे-इकतालीस खण्डोंके द्वितीय भागके ऊपर तीन खण्डोंके मिलानेपर साढ़े तेईस खण्ड होते हैं | २३३ । दुगुण वृद्धिके आगे इतने मात्र स्थान जाकर स्थित स्थानमें सकल प्रक्षेप गत स्थानोंके बराबर होते हैं २३३ । ये प्रक्षेप दुगुणवृद्धिके स्थानों सम्बन्धी प्रक्षेपोंसे दुगुणे होते हैं, क्योंकि, दो जघन्य स्थानों में एक साथ उत्कृष्ट संख्यातका भाग देनेपर दो सकल प्रक्षेप उत्पन्न होते हैं। इसलिये इन प्रक्षेपोंको दूने करनेपर यहाँ पहलेके प्रक्षेप सैंतालीस खण्ड प्रमाण होते हैं। इन प्रक्षेपासे, जघन्य स्थान नहीं उत्पन्न होता है, क्योंकि, दूसरे नौ खण्डोंका यहाँ अभाव है। ____ अब उनकी उत्पत्तिके विधानको कहते हैं। वह इस प्रकार है-साढ़े तेईस खण्ड गच्छके एकसे लेकर उत्तरोत्तर एक एक अधिक संकलन प्रमाण त्रिकोण क्षेत्रको स्थापित करके समीकरण करनेपर एक खण्डके तीन चतुर्थ भागसे अधिक ग्यारह खण्ड विष्कम्भ (११३ ) और साढ़े तेईस खण्ड (२३३ ) आयाम युक्त क्षेत्र होकर स्थित रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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