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________________ १७६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, २१४. णवरि एदं खेत्तं दोपिसुलवाहल्लमिदि कट्ट अब्भपटलं व मज्झे दोफालीश्री कादण एगफालीए उवरि विदियफालीए दृविदाए तिण्णिचदुब्भागाहियएकारसखंड विक्खंभं सत्तेतालीसखंडायामक्खेत्तं होदि । एत्थ तिण्णिचदुब्भागाहियदोखंड विक्खंभेण सत्तेत्तालखंडायामेण तच्छेदण अवणिय पुध दृविदे सेसखेत्तपमाणं. णवखंड विक्खंभं सत्तेतालखंडायाम होदि । पुणो पुव्वमवणेदूण पुध दृविदखेत्तम्हि' तिण्णिचदुब्भागविक्खंभेण सत्तेतालीसखंडायामेण तच्छेदूण पुध हविय सेसखेत्तं दोखंडविक्खंभं सत्तेत्तालीसखंडायाम मज्झे दोफालीयो कादण एगफालीए उवरि विदियफालीए संधिदाए एगखंडविक्खंभं चदुणवदिखंडायामं खेत्तं होदि । एत्थ एगासीदिमेत्तखंडवग्गो घेत्तण पदरागारेण ठइदे समचउरंसं णवखडयाम-विक्संभखेत्तं होदि । एदं घेत्तण पुव्वुत्तणवविक्खंभसगदालीसखंडायामखेत्तस्स पासे हविदे णवविक्खंभ-छप्पण्णायामखेत्तं होदि । एत्थ णवखंडमेत्तसगलपक्खेवा लभंति; एगोलीए उकस्ससंखेज्जमेत्तपिसुलुवलंभादो । एदे सगलपक्खेवे घेत्तूण सत्तेतालीसखंडमेत्तसगल पक्खेवेसु पक्खित्ते छप्पण्णखांडमेसा सगलपक्खोवा होति । एदेहि सगलपक्खोवेहि एगं जहण्णहाणं होदि, एदेसु छप्पण्णखंडेसु उक्कस्ससंखेजमेत्तसगलपक्खोवुलंभादो। एदम्मि उप्पण्णजहण्णहाणे दुगुणवड्डिहाणम्हि' विशेष इतना है कि यह क्षेत्र चूँकि दो पिशुल बाहल्य रूप है, इसलिये अभ्रपटलकेसमान बीचमेंसे दो फालियाँ करके एक फालिके ऊपर दूसरी फालिको स्थापित करनेपर तीन चतुर्थ भागोंसे अधिक ग्यारह खण्ड विष्कम्भ और सैतालीस खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है । इसमेंसे तीन चतुर्थ भागसे अधिक दो ख ग्ड विष्कम्भ और सैंतालीम खण्ड आयामसे काटकर पृथक स्थापित करनेपर शेष क्षेत्रका प्रमाण नौ खण्ड विष्कम्भ और सैंतालीस खण्ड आयामरूप होता है। फिर पहिले अपनयन करके पृथक स्थापित क्षेत्रमेंसे तीन चतुर्थ भाग विष्कम्भ और संतालीस खण्ड आयामसे क्षेत्रको काटकर पृथक स्थापित करके दो खण्ड विष्कम्भ और सैंतालीस खण्ड आयाम युक्त शेष क्षेत्रके बीच में से दो फालियाँ करके एक फालिके ऊपर दूसरी फालिको जोड़ देनेपर एक खण्ड विष्कम्भ और चौरानवें खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है। इसमेंसे इक्यासी मात्र खण्डोंके वर्गको ग्रहणकर प्रतराकारसे स्थापित करनेपर नौ खण्ड विष्कम्भ और नौ खण्ड आयाम युक्त समचतुष्कोण क्षेत्र होता है । इसको ग्रहणकर पूर्वोक्त नौ खण्ड विष्कम्भ और सैंतालीस खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रके पार्श्व भागमें स्थापित करनेपर नौ खण्ड विष्कम्भ और छप्पन खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है। यहाँ नौ खण्ड मात्र सकल प्रक्षेप पाये जाते हैं, क्योंकि, एक पंक्तिमें उत्कृष्ट संख्यात मात्र पिशुलोंकी उपलब्धि है। इन सकल प्रक्षेपोंको ग्रहण करके सैंतालीस खण्ड मात्र सकल प्रक्षेपोंमें मिलानेपर छप्पन खण्ड मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं। इन सकल प्रक्षेपोंसे एक जघन्य स्थान होता है, क्योंकि, इन छप्पन खण्डों में उत्कृष्ट संख्यात मात्र सकल प्रक्षेप पाये जाते हैं। उत्पन्न हुए इस जघन्य १ अप्रतौ 'हविदे खेत्तम्हि' इति पाठः । २ अापतौ 'वडिहाणेहि', ताप्रतौ 'वडिहाणे [ हि ]' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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